झांसीः भगवा हुयी नगर निगम झांसी के लिये भाजपा की ओर से यह दूसरी पारी होगी, जिसमे उनकी पार्टी का मेयर व्यवस्था संचालन और झांसी के विकास मे बढ़ती रफतार को तेज गति देने का काम करेगा। पहली बार जनप्रतिनिधि बने रामतीर्थ के सामने नगर निगम की वर्तमान व्यवस्था, सभासदो से तालमेल, प्रशासनिक मशीनरी पर कमांड और झांसी के विकास का विजन धरातल पर लागू करवाना सबसे बड़ी चुनौती होगा।
व्यापारी वर्ग से आने वाले रामतीर्थ सिंघल के पास मैनेजमेंट में का खासा अनुभव है। पिछले कई सालो से स्कूल और व्यापार का संचालन कर रहे रामतीर्थ सिंघल अब जनता के लिये मैनेजमेंट करेगे। अपने लिये किये गये मैनेजमेंट में काफी गुंजाइश रहती है।
देखा जाए, तो रामतीर्थ सिंघल भी निर्वतमान मेयर किरन राजू बुकसेलर की तरह ही निगम के लिये नये हैं। उन्होने निगम में कभी दखल नहीं दिया और ना ही उन्होने निगम के कार्यों की जानकारी की। ऐसे में शुरूआती दौर के कुछ माह उन्हे व्यवस्था संचालन की गति जानने में बिताने पड़ सकते हैं।
हां, रामतीर्थ सिंघल के लिये प्लस प्वाइंट यह रहेगा कि वो विधायक रवि शर्मा का कितना साथ ले पाते हैं। विधायक को पिछले कुछ सालो में ना केवल विधायिका का बल्कि नगर निगम के संचालन का भी अनुभव हो गया है। नगर निगम का पूरा कुनबा उनके लिये नया नहीं है।
इसके अलावा एक सवाल और है, जो रामतीर्थ के लिये परेशानी खड़ी कर सकता है। सवाल यह है कि रामतीर्थ निगम के सदन में अपनों को कैसे मैनेज करते हैं? यहां विद्रोह या भितरघात उसी तरह की स्थिति निर्मित कर देगा, जो पिछले मेयर को झेलना पड़ी थी।
वैसे रामतीर्थ कुछ मामलों में किस्मत के धनी भी कहे जाएंगे। वो पहले मेयर होगे,जिन्हे संविधान संशोधन के बाद वित्तीय अधिकार मिलेगे। यह काम होता है, तो यकीनन रामतीर्थ सिंघल अपने घोषणा पत्र को आसानी से लागू कर सकेगे।
सवाल तो बहुतेरे है। मसलन, चुनाव में जिन्हांेने या कहे पार्टी से जुड़े लोग। विधायक खेमा। सांसद खेमा। व्यापारी खेमा। शुभचिंतक आदि। इन्हे कैसे अपने कार्य की सीमा के अंदर रखते हुये साधे रखा जाएगा? अक्सर राजनीति में टीस इन्हीं बिन्दुओ के इर्दगिर्द घूमती है, जो जिसके दिल में जा बैठी, वो ही विरोधी या कहे मुखालफत करने वाला हो जाता है!