झांसीः आज से पांच साल पहले झांसी की दूसरी महापौर श्रीमती किरन वर्मा ने मुक्ताकाशी मंच से पद की शपथ ली थी। एक बार फिर वो लम्हा सामने है। पार्टी वही, जगह वही। बस, बदले हैं, तो चेहरे। महापौर के रूप में रामतीर्थ सिंघल, आयुक्त की जगह अमित गुप्ता और इन सबके बीच केन्द्र बिन्दु विधायक रवि शर्मा।
बीजेपी का गढ़ कही जाने वाली झांसी मे महापौर चुनाव के लिये पार्टी ने वैश्य वर्ग से रामतीर्थ सिंघल पर दांव लगाया था। चुनाव के पहले दौर मे दमदार प्रत्याशियो के आने से भाजपा शुरूआत मे बैकफुट पर आती नजर आने लगी थी।
बसपा से डमडम और कांग्रेस से पूर्व मंत्री प्रदीप जैन आदित्य मैदान मे थे। इन दो राजनैतिक और चर्चित चेहरो मे रामतीर्थ सिंघल का चेहरा चर्चा पाने को बेताब रहा।
इस मामले मे केन्द्रीय भूमिका निभायी विधायक रवि शर्मा ने। जीएसटी, नोटबंदी जैसे हालातो मे पार्टी को जीत की दिशा मे ले जाने के लिये एक बार फिर से रवि शर्मा के कंधांे पर भार था।
आपको बता दे कि रवि शर्मा ने ही किरन वर्मा के चुनाव मे पूरी ताकत लगायी थी। इसका नतीजा रहा था कि किरन वर्मा की दमदार तरीके से जीत हुयी थी। रवि शर्मा ने एक बार फिर से जीत का हासिल कर दिखा दिया कि वो राजनीति मे अब खिलाड़ी हो गये हैं।
हालांकि उनकी एक बात जनता को आज भी खलती है। रवि शर्मा ने जब किरनक वर्मा ने चुनाव जीता था, तब कहा था कि वो मेयर के साथ मिलकर झांसी को नयी पहचान और विकास की नयी इबारत लिखेगे।
रवि और किरन के बीच तालमेल ज्यादा दिनो तक नहीं चल सका। आपसी तनातनी और कई मुददो पर मतभेद के चलते दोनो के रास्ते अलग-अलग हो गये। इसने झांसी का बड़ा नुकसान किया।
बरहाल, भूली बातो को बिसारते हुये अब एक बार फिर से वो लम्हे आ गये, जब झांसी को विधायक और मेयर की जुगलबंदी का मौका मिला है। यहां सवाल वही है कि क्या रवि और रामतीर्थ का तालमेल स्मार्ट सिटी की कल्पना को साकार देने मे साथ रहेगा?