झांसीः खजुराहो मे चल रहे अन्तराष्टीय फिल्म फेस्टिवल मे इन दिनो सबकी निगाहे राजा बुन्देला पर हैं। राजनैतिक जमीन पर शून्य हो गये राजा क्या वहां धूल भरी जमीन तलाश रहे हैं? यह सवाल तेजी से उठ रहा है।
बुन्देलखण्ड के नाम पर अपनी सियासी पारी शुरू करने वाले राजा बुन्देला विधानसभा चुनाव की हार के बाद दोबारा बुन्देलखण्ड की ओर रूख नहीं कर पाये। अपनी फितरत की तरह राजनैतिक पाले बदलने वाले राजा बुन्देला की फिल्म फेस्टिवल मे भूमिका को लेकर सभी की निगाहे हैं। कहा जा रहा है कि
राजा बुन्देला का बुन्देली राग अब कैश कराने की तर्ज पर आ गया है। मायानगरी और राजनैतिक गलियारे में बुन्देलखण्ड के नाम पर रोटी सेंक रहे राजा बुन्देला को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। ओरछा मे जमीन को जुगाड़ से हासिल करने के आरोप मे घिरे राजा पर फिर से यही आरोप लग रहा है।
कभी बुन्देली माटी को अपनी किस्मत कहने वाले राजा बुन्देला राजनैतिक हार के बाद वापसी का दम नहीं दिखा सके, हां बुन्देलखण्ड को भुनाने मे पीछे नहीं रहे।
अलबत्ता बाहर से बुन्देलखण्ड के सहारे कद और काठी की तलाश आज भी जारी है।
जानकार मानते है कि राजा की हर चाल गहरी होती है। बिना मकसद किसी मुददे पर पहल नहीं करते। इन दिनो उन्हे मप्र बहुत प्यारा लग रहा है। आने वाले दनो में चुनावी अखाड़ा बनने जा रहे मप्र मे मुख्यमंत्री के करीब होने का फिल्मफेस्टिवल से बड़ा सहारा नहीं हो सकता? इसलिये राजा ने अपने रिश्तो को भुनाने और सियासी जमीन की तलाश मे एक बार फिर से कोशिश करना शुरू कर दी है।
बुन्देली माटी का यह दुर्भाग्य ही है कि जितने भी किरदार उसकी आवाज बने, वो बुन्देलखण्ड के मुददे को भुनाने से बाज नहीं आये। इनमे सबसे अहम राजा बुन्देला है। सियासी गलियारे मे कभी लखनउ तो कभी दिल्ली से बुन्देलखण्ड की आवाज उठाकर लोकप्रियता को हासिल करने की अपनी हसरत को अंजाम देने मे माहिर राजा का खजुराहो मे प्रवेश सवालो के घेरे मे हैं।