झांसीः नोटबंदी, जीएसटी और विपक्षी दलो के तीखे तेवर जैसे हालातो मे घिरी बीजेपी को निकाय चुनाव मे झंासी की अपनी परंपरागत सीट खतरे मे नजर आ रही है। यही कारण है कि पार्टी के स्थानीय नेताओ के हाथपांव फूल गये। बाजी हाथ से ना फिसले इसके लिये पार्टी को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, सांसद एवं केन्द्रीय उमा भारती को मैदान मे उतारने के लिये मजबूर होना पड़ा।
यह टीम अब झांसी ही नहीं पूरे प्रदेश की 17 निगमे मे भगवा फहराने का जिम्मा अपने कंधों पर लिये घूम रही है। कल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनसभा की। आज सांसद व केन्द्रीय मंत्री उमा भारती नगर की गलियो मे प्रत्याशी की जीत के लिये अपील करती नजर आयीं।
प्रदेश मे हो रहे निकाय चुनाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिये चुनाव के बाद पहली परीक्षा है। कल झंासी आये योगी के तेवर काफी बदले दिखे। उन्होने जीत के लिये लुभावने वादो के साथ संदेश दिया कि जीत जरूरी है।
गौरतलब है कि बुन्देलखण्ड मे लोकसभा व विधानसभा चुनाव मे पार्टी को काफी लाभ हुआ था। विधानसभा चुनाव मे 19 मे से पूरी 19 बीजेपी की झोली मे समा गयी थी। स्टार प्रचार के रूप मे प्रधानमंत्री ने मोर्चा संभाला था।
निकाय चुनाव मे नरेन्द्र मोदी तो नहीं आ सकते, लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मैदान मे उतरना पड़ा। स्थानीय स्तर के चुनाव मे सूबे के मुख्यमंत्री का आना इस बात का संकेत करता है कि बीजेपी देश मे नोटबंदी, जीएसटी जैसे मुददो पर उपज रही जनता की नाराजगी को दूर करने का हर संभव प्रयास कर रही है।
यही कारण है कि बुन्देलखण्ड मे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, सांसद व केन्द्रीय मंत्री उमा भारती को टीम मे शामिल किया गया।
पार्टी मान रही है कि अकेले विधायक रवि शर्मा का जादू शायद काम ना कर सके। इसके अलावा भितरघात का भी खतरा मंडरा रहा है। यह भितरघात नाराजगी टिकट वितरण को लेकर है। मउ जैसे क्षेत्र मे बीजेपी से बगावत कर पालिका अध्यक्ष पद के लिये मैदान मे उतरे विष्णु राय को बीते रोज ही पार्टी से निष्कासित किया गया।
यहां सवाल यह है कि क्या बदली परिस्थितितयो मे बीजेपी को स्थानीय स्तर के चुनाव मे भी बड़े नेताओ का होना जरूरी बन गया है? स्थानीय स्तर पर किसी नेता का कद इतना नहीं है कि वो महापौर पद के लिये कांग्रेस, बसपा, सपा व निर्दलीय प्रत्याशियो को चुनौती देने लायक हो?

पार्टी को इस बात का भी अंदाजा है कि जिस तेजी से कांग्रेस ने अपने प्रचार को व्यापक किया है, उससे संधमारी की आशंका तेज हो गयी है। बसपा भी अपने बूते पर दमखम दिखा रही है। सपा का युवा जोश अंगड़ाई लेते हुये चुनौती दे रहा है। आम आदमी पार्टी की धमक का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कल ही भाजपा और आप के समर्थक एक चैनल की डिबेट के दौरान टकरा गये। आप को कम आंकने की नौबत ना आये, इसके लिये ही बीजेपी ने अपनी रणनीति मे बदलाव किया?
बरहाल, बीजेपी क्या अपना परंपरागत गढ़ बचा सकेगी? क्या टिकट वितरण को लेकर उपजी नाराजगी के भीतर बने समीकरण और जातीय समीकरण को साधने मे बड़े नेता सफल हो सकेगे? इन सवालो का जवाब मतदान के बाद सामने आयेगा। अभी मैदान मे उतरी टीम मे मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री चुनावी माहौल बनाने की शुरूआत तो कर ही गये हैं!

 
                         
                         
                        