झांसीः बीते रोज उप्र व्यापार मंडल की महिला शाखा की जिलाध्यक्ष कंचन आहूजा ने उप्र उद्योग व्यापार मंडल की कमान संभाल ली। कंचन के उप्र व्यापार मंडल छोड़ने के पीछे जो कारण सामने आये उसमे संगठन मे दोनो के बीच चल रही तनातनी को संजय पटवारी मैनेज नहीं कर पाये। इसका नतीजा सामने है। कंचन के जाने के बाद संजय पटवारी के संगठन चलाने की क्षमता को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं।
कई सालो पहले व्यापारियो के हित को लेकर गठित किये गये उप्र व्यापार मंडल का शनै-शनै विस्तार होता गया। नगर मे व्यापारी राजनीति मे नये चेहरे के रूप मे उभरे संजय पटवारी शुरूआती दौर मे समन्वय की नीति पर चले। इसका उन्हे बेहतर परिणाम मिला।
नगर मे पहले से चल रहे व्यापारी संगठनो के बीच उप्र व्यापार मंडल ने अपनी जगह बनायी। अपने संगठन को सफलता की सीढ़ी पर चढ़ता देख संजय के अंदर का राजनैतिक व्यक्तित्व जागने लगा। बस, यही से उनके संगठन मे विखराव कहे या फिर सदस्यो के बीच मतभेद का दौर शुरू हो गया।
दरअसल, उप्र व्यापार मंडल का नगर के सभी बाजारो मे अलग-अलग शाखा गठित कर संजय ने अपने हुनर का परिचय, तो दिया, लेकिन एक गलती कर बैठे। संजय के पास सलाहाकारो की कमी उस समय से हो गयी थी, जब उन्हांेने शैलेष भाटिया, विजय जैन जैसे व्यापारी नेताओ को संगठन से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
दोनो व्यापारी नेताओ ने अपनी धमक को कायम रखते हुये नये व्यापारी संगठन को खड़ा कर दिखा दिया कि उनकी हैसियत किसी से कम नहीं। उप्र व्यापार मंडल के चढ़ते ग्राफ के अचानक नीचे आने से घबराये संजय पटवारी ने अब महिला शाखा का गठन करना शुरू किया।
यह एक अच्छी पहल थी। शुरूआत मे संजय पटवारी ने व्यापारी महिला नेत्री कंचन आहूजा को अपने पाले मे किया। कंचन का व्यक्तित्व काफी विकराल माना जाता है। कंचन के उप्र व्यापार मंडल से जुड़ने के बाद महिला शाखा ने काफी विस्तार किया। इससे संजय को नयी उर्जा मिली।
महिला संगठन के सहारे उप्र व्यापार मंडल को जीवत बनाये रखने की संजीवनी पाने वाले संजय पटवारी की महत्वकांक्षा बढ़ने लगी। इस बीच संगठन मे अर्पणा दुबे को जोड़ा गया। अर्पणा दुबे के व्यापार मंडल मे आने के बाद से ही खटपट का दौर शुरू हो गया।
जानकार बताते है कि कंचन और अर्पणा के बीच कभी हमेशा तनातनी का माहौल रहा। दोनो अपने-अपने तर्क के साथ संगठन मे वजूद बनाये रखना चाहती थी। ऐसा नहीं है कि संजय को अर्पणा और कंचन के बीच मतभेद की जानकारी नहीं थी,लेकिन उन्हांेने मतभेद दूर करने की बजाय दोनो को उलझा दिया!
लंबे समय से चल रही तनातनी ने उप्र व्यापार मंडल के अंदर तूफान आने के संकेत दे दिये। कंचन मौके की तलाश मे थी। इस बीच राजीव राय जैसे सुलझे व्यापारी नेता का जब कंचन और उनकी टीम को साथ मिला, तो कंचन ने देर नहीं की और उप्र उद्योग व्यापार मंडल को ज्वाइन कर लिया। कंचन के जाने की खबर का असर यह था कि संजय पटवारी ने कल ही अर्पणा दुबे को जिलाध्यक्ष की कमान सौंप दी।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि संजय खुद कंचन आहूजा के बाहर जाने का इंतजार कर रहे थे। यहां सवाल यह उठ रहा है कि जिस संगठन का मुखिया अपने सदस्यो के बीच मतभेद नहीं सुलझा सकता, तो व्यापारी समस्याओ के प्रति कितना संजीदा होता होगा?
माना जा रहा है कि कंचन आहूजा के जाने के बाद उप्र व्यापार मंडल मे भगदड़ की स्थिति बनने वाली है। देखना है कि आने वाले दिनो मे कितने और सदस्य बाहर का रास्ता देखते हैं।