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झांसी-सपा की साइकिल पंचर, चलाने वाले सो रहे? -जनप्रतिनिधि व पदाधिकारी जनसंपर्क से दूर

झांसीः पारिवारिक कलह मे डूब कर पार्टी को हुये नुकसान की भरपाई अभी पूरी नहीं हो पायी है। मुखिया अखिलेष यादव चिंता मे है कि कैसे कुनबा सेहतमंद बने। पर, कुनबा के लोग पब्लिक डोज पीने को तैयार नहीं। षायद मन मे राजनैतिक चेतना नहीं रह गयी। सो, साइकिल पंचर है और चलाने वाले चैन की नींद सो रहे है?

प्रदेष मे समाजवादी पार्टी को जनाधार देने मे बुन्देली माटी का अहमद योगदान रहा है। कलम, कला और कृपाण की धरती से धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव के संकटमोचक नेताओ  की फेहरिस्त मे षुमार रहे चन्द्रपाल सिंह यादव, दीप नारायण सिंह यादव जैसे नेता आजकल हाषिये पर होने का गम भुलाने की जददोजहद मे उलझे हैं। मन लग नहीं रहा। पार्टी मे जोष नहीं हैं।

लगता है सभी मोदी फीवर का इलाज नहीं ढूंढ पा रहे। संघर्श के आदी है, हम समाजवादी है। सपा के इस नारे की तीव्रता का आलम यह है कि सपाई बुन्देली धरती पर गरजने की जरूरत भी करते हैं, लेकिन उसका असर धमक से ज्यादा नहीं दिख रहा।

सपाईयो  की मजबूरी यह है कि बड़े नेता अपनी जुगत से बाहर नहीं आ पा रहे। दीप नारायण अपनी पत्नी के लिये निवाड़ी मे जमीन तैयार कर रहे, तो चन्द्रपाल सिंह यादव अपने बेटे के लिये 2019 मे होने वाले आम चुनाव का टिकट परिवार मे बनाये रखने का मंत्र ढूंढ रहे हैं।

सत्ता की चकाचैंध के दौरान बंगले की रौनक के षिकार रहे इन जैसे अन्य नेता भी षार्टकट के जरिये राह मिलने का तानाबाना बुनने मे लगे हैं। एमएलसी गायब हैं।समाज मे दमदार तरीके से पहल करने की सपाईयो  की जोषीली जवानी मोदी आभा मे बौनी साबित हो रही है। सपा नेता समारोह, जनता की समस्याओ  और पब्लिक मे पहचान बनाने की सोचना ही भूल गये हैं।

इसके बाद भी गुमान आज भी इतना है कि दीप नारायण सिंह यादव दददा की छवि मे कैद होकर सब कुछ कर लेने का इरादा रखते हैं, तो चन्द्रपाल सिंह यादव पार्टी के वनमैन षो होने का पूरा लाभ उठा रहे हैं। पार्टी के इन हालात से चिंतित कार्यकर्ता आज भी बड़े नेताओ  का सड़क पर साइकिल से दौड़ना याद कर मन को संतोश देने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे।

हां, छोटे और उभर रहे सपा के जोश भरे चेहरे जरूर कभी-कभी हलचल मचा कर पार्टी की मौजूदगी का एहसास करा देते हैं। क्य यह काफी है?

कार्यकर्ताओ  का कहना है कि माना प्रदेष सरकार सपा के कराये कार्यों को अपना बता कर वाहवाही लूट रही, तो क्या पूरे बुन्देलखण्ड के लोगो  की समस्याएं नहीं देखी जा सकती? स्मार्ट सिटी, सिंचाई, गृहकर, स्मार्ट सिटी, जैम की समस्या, ओवरब्रिज की लचीली चाल, बेरोजगारी, बुन्देलखण्ड मे रोजगार उद्योग धंधे आदि मुददे नहीं उठाये जा सकते? क्या बड़े नेता अपने लाभ के लिये ही कार्यकर्ताओ  का प्रयोग करेगे? या फिर जब पार्टी बोलेगी, तभी बोलेगे? इन हालत मे पब्लिक हम पर कैसे भरोसा करेगी? कार्यकर्ताओ  की चिंता जायज लगती है।

विटामन से भरपूर कार्यकर्ताओ  की चिंता को यदि नेता अपनी राजनैतिक चेतना के लिये पी ले, तो यकीनन पूरे प्रदेष मे सपा को जिंदा करने की पहल बुन्देली माटी से हो सकती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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