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झांसी से निकलने के बाद हिमांशु दुबे ने कैसी बदली अपनी तकदीर?

कुमार रवि प्रकाश

लखनउ 6 अप्रैलः कहते है कि इन्सान अपनी तकदीर का निर्माता खुद होता है। यह बात भाजपा के युवा चेहरे हिमांशु दुबे पर सौ फीसद लागू होती है। झांसी जैसे छोटे शहर मे अपनी पहचान बनाने की जददोजहद मे जुटे हिमांशु बड़ी सोच और अपने बुलंद इरादो को आकार नहीं दे पा रहे थे। परिवार का जिम्मा और पार्टी के प्रति समर्पण के मोह मे फंसे हिमांशु ने आखिर बुन्देली माटी को परे रखने का फैसला किया। चंद दिनो मे ही इस फैसले ने उन्हे नयी दिशा देने के पथ पर आगे बढ़ा दिया।

बुन्देलखण्ड का झांसी जिला वैसे तो राजनैतिक लिहाज से प्रदेश स्तर पर कम ही गूंजता है। बुन्देली राजनीति चंद चेहरो  के इर्दगिर्द घूमती रहती है। यह चेहरे भी जनता से जुड़ने मे  तभी दिलचस्पी दिखाते हैं, जब चुनाव बिगुल बजा हो।

अमूनन दूसरे के कंधे पर सवार होकर राजनीति करने वाले बुन्देलखण्ड के अधिकांश नेताओ  को बनने मे  किसी ना किसी दूरगामी सोच वाले व्यक्तित्व का सहारा रहा। पर्दे के पीछे से कई नेताओ  के सहारा बने हिमांशु दुबे शुरू से ही पार्टी के प्रति समर्पित रहे। आज भी उनकी प्राथमिकता पार्टी का आदेश है।

हम आपको बताते है कि आखिर हिमांशु दुबे कौन है और कैसे झांसी से लखनउ का सफर तय किया।

झांसी के नगर क्षेत्र मे रहने वाले हिमांशु दुबे वो युवा चेहरे है, जो अपनी सोच, शरीर और आत्मा को देश और समाज के लिये समर्पित किये हुये हैं। भाजपा के आधार स्तंभ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की तरह हिमांशु भी वैवाहिक बंधन मे  बंधने से परहेज करते हैं।

झांसी मे भाजपा की महानगर इकाई मे  समाये रहे हिमांशु दुबे शुरू से ही पद से दूर रहे। सोच मे  लेखन समाया था। इसलिये प्रवक्ता के तौर पर काम करना बेहद पसंद रहा। इस पद ने उन्हे झांसी मे  भाजपा के प्रवक्ता के रूप मे खासी पहचान दिलायी। इस पहचान मे हिमांशु का मिलनसार स्वभाव भी शामिल रहा। छोटा-बड़ा, गरीब, अमीर और जात धर्म से परे वाली सोच उन्हे विरोधियो  को भी अपने दिल मे जगह देने को मजबूर कर देती है।

पिछले कई सालो से झांसी मे प्रवक्ता के रूप मे अपने राजनैति करियर को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हिमांशु दुबे को जब एक दिन पार्टी के बड़े नेता ने लखनउ आने का न्यौता दिया, तो हिमांशु पारिवारिक उलझन मे फंस गये। घर मे  माता पिता की जिम्मेदारी भी सर पर है।

यहां आपको यह बताना जरूरी है कि हिमांशु दुबे पहले व्यक्ति है, जिन्होने रानी झांसी के जन्मोत्सव पर सबसे पहले दीप दान करने का बीड़ा उठाया था। आज यह कदम पूरे झांसी वासी के लिये शान का प्रतीक बन गया है।

बड़े नेता के न्यौते को स्वीकारने की उलझन मे उलझे हिमांशु ने अपने दिल की बात को सुना। परिवार से परामर्श किया और हमेशा की तरह पार्टी के आदेश को सिर माथे पर लेते हुये लखनउ कूच कर गये। यहां जमकर पसीना बहाया। पार्टी नेताओ  के कार्यक्रमो  का सफल बनाया। भाषण से लेकर संवाद करने के तरीको मे जबरदस्त बदलाव किया।

स्वभाव मे  लेखन और दूरगामी सोच का नतीजा रहा कि चंद दिनो  मे  ही वो लखनउ मे  पार्टी मुख्यालय मे  मीडिया मैनेजमेन्ट का अहम हिस्सा बन गये। आज भाजपा के स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने उन्हे बधाई दी।

यकीनन बुन्देली माटी के लाल की बढ़ती गरिमा माटी को गौरान्वित कर रही है। हिमांशु कहते है कि सोच बड़ी रखो और दूसरो  के लिये जीना सीखो, उपर वाला सब कुछ देगा।

 

 

 

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