संदीप पौराणिक
भोपाल मध्यप्रदेश में इसी साल सात महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस में किए गए बड़े बदलावों के बीच प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच गजब की जुगलबंदी देखी जा रही है। मंगलवार को लगभग छह घंटे के रोड शो और एक घंटे से ज्यादा पार्टी दफ्तर के कार्यक्रम के दौरान दोनों एक-दूसरे के बीच बेहतर तालमेल दिखाने में नहीं चूके।
राज्य की कांग्रेस इकाई के लिए मंगलवार का दिन किसी उत्सव से कम नहीं था। नए प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का पदभार ग्रहण करने का कार्यक्रम था। इस दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर महासचिव दिग्विजय सिंह, प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया, नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव सहित तमाम दिग्गज रोड शो के दौरान एक खुले वाहन और फिर एक मंच पर साथ नजर आए।
राजधानी में हवाईअड्डे से कांग्रेस दफ्तर की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है, मगर यह रास्ता तय करने में नेताओं के काफिले को छह घंटे से ज्यादा लग गए। पूरे प्रदेश से पहुंचे कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं के सामने अपनी ताकत का इजहार करने का मौका हाथ से जाने नहीं दिया। पूरे रोड शो के दौरान कई मौके ऐसे आए, जब कमलनाथ और सिंधिया ने एक-दूसरे का हाथ पकड़कर हवा में लहराए और संदेश दिया कि ‘हम एक हैं।’
राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का मानना है कि कमलनाथ एक अनुभवी और सिंधिया युवा नेता हैं, दोनों की आपसी समझ कांग्रेस के लिए फायदेमंद हो सकती है, इसे दोनों नेता भी जान गए हैं। दिल में कुछ भी हो, मगर उन्हें यह तो जताना ही होगा कि पार्टी हाईकमान का फैसला सही है और उन्हें मंजूर है।
उन्होंेने कहा, “अरसे बाद कांग्रेस को दो ऐसे नेताओं का नेतृत्व मिला है, जो पार्टी व कार्यकर्ताओं में नई जान फूंक सकता है। जो आगामी चुनाव में पार्टी को फायदा भी पहुंचाने में मददगार होगा।”
कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का ऐलान होने के साथ यह प्रचारित किए जाने की कोशिश हुई कि वह कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद का चेहरा हैं, मगर कमलनाथ ने मंगलवार को साफ कर दिया कि उनके मन में किसी पद की भूख नहीं है, अगर भूख है तो राज्य में कांग्रेस का परचम फहराने की।
चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद सिंधिया की ओर से किसी तरह की प्रतिक्रिया न आने के चलते राजनीतिक हलकों में यह चर्चा रही कि सिंधिया हाईकमान के फैसले से नाखुश हैं, लेकिन भोपाल के कार्यक्रम में सिंधिया के तेवरों ने सारे कयासों को झुठला दिया।
जानकारों की मानें तो पार्टी की गुटबाजी को मिटाना, अन्य नेताओं के असंतोष को दूर करना और क्षत्रप परंपरा को मिटाना, इनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगा, क्योंकि राज्य में कांग्रेस के क्षत्रपों के अपने-अपने गुट हैं, गुटबाजी ने कांग्रेस को पनपने नहीं दिया और इसका फायदा भाजपा उठाती रही।
राज्य में इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव राजनीतिक भविष्य की दृष्टि से दोनों नेताओं के लिए अहम है। लिहाजा, मजबूरी ही सही मगर उन्हें मिलकर काम करना होगा। दो उपचुनावों में कांग्रेस की जीत से कार्यकर्ताओं का हौसला बुलंद है। इस बार अगर कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं कर पाती है, तो आने वाला समय राज्य में कांग्रेस और इसके नेताओं के लिए मुश्किल भरा होग