झांसीः झांसी की खासियत है कि यहां मुददे चंद दिन के बाद अपने आप दम तोड़ देते हैं। बात चाहे अतिक्रमण की चले या फिर अवैध निर्माण की। वैसे तो नगर मे हर दूसरा काम बिना इजाजत और अवैध की परिधि मे नजर आता है। पर, यहां एक दुश्मन ऐसा भी है, जो प्रशासन और नियमो का धता बताकर आज भी बाजार मे धड़ल्ले से बिक रहा है। बात हो रही है पालीथिन की। यह वो दुश्मन है, जो आम आदमी ही नहीं, बल्कि जानवरांे को भी मौत की आगोश मे ले रहा है। ताज्जुब तो इस बात का है कि इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले ना जाने क्यो खामोश है? आखिर जनहित भी कोई चीज है या नहीं?
आपको बता दे कि बीते दिनो ही महाराष्ट सरकार ने प्रदेश मे प्लास्टिक को बैन कर दिया है। वहां की सरकार भले की देर से जागी, लेकिन सही दिशा मे सही कदम उठाया। वैसे पालीथिन के प्रयोग को लेकर न्याय पालिका भी सख्त है, लेकिन इसके बाद भी इसका प्रयोग नियमो को धता बताकर किया जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार पालीथिन जलने के बाद भी जिन्दा रहती है। सोचिये जो चीज जलने के बाद जिन्दा रहती हो, वो कितनी खतरनाक होगी।
आम आदमी पालीथिन के उपयोग से होने वाली हानि को लेकर जागृत नहीं है। चिकित्सक भी मानते है कि पालीथिन मे लायी जाने वाली सब्जी स्वास्थ्य के लिये घातक होती है।
वैसे तो झंासी मे पालीथिन पर रोक के लिये कई बार प्रयास किये गये। यह प्रयास सार्थकता के मुकाम को इसलिये नहीं छू सके, क्यांेकि पालीथिन को चलाने वालो के कंधे पर ऐसे लोगो का हाथ आ जाता है, जो समाज मे दोहरे चेहरे के साथ सफेद कालर किये घूमते है। चाहे वो व्यापारी नेता हो या फिर राजनेता?
सवाल यह है कि झांसी की सबसे बड़ी दुश्मन बन चुकी पालीथिन को लेकर एक और रिपोर्ट है। इसमे मरने वाले अधिकांश जानवरो की मौत का एक कारण पालीथिन है।
कचरे के ढेर से लेकर सब्जी मंडी या गलियों मे विचरण करने वाले जानवर खाने के सामान के साथ पालीथिन भी खा रहे हैं। इसके अलावा जलाये जाने वाले कचरे मे सबसे ज्यादा पालीथिन जलती है, जो वायु प्रदूषित कर रही है। यही नहीं नगर की अधिकांश नालियां पालीथिन के चलते जाम है।
बारिश मे नाले और नालियो के उफान लेने का एक कारण पालीथिन है। सवाल यह है कि जब इतनी घातक वस्तु का प्रयोग खुलेआम हो रहा है और किसी को रोकने की जरूरत महसूस नहीं हो रही, तो फिर यही कहा जाएगा कि प्रशासन और राजनेता जनहित मे क्या कदम उठाने की सोचते होगे?