विधायक जी, गाय हमारी माता है, इनको क्यों कोई नहीं बचाता है?

रिपोर्ट-देवेन्द्र कुमार व रोहित जाटव
झांसीः गौ सेवा का दम भरने वाले झांसी में कई हैं। इन दिनांे तो जैसे हर कोई गौ सेवक है। क्या आपको पता है कि चंद लोगों को छोड़ दीजिये, तो माननीय भी गौ वंश की सुरक्षा को लेकर कोई प्लान नहीं बना पाएं हैं। आज नगर में गौ वंश ही यह हालत है कि कचरे के ढेर के सहारे उनकी सांसांे को ताकत मिल रही है। हालांकि यह ताकत उन्हे मौत के मुंह भी ले जा रही है।
नगर निगम आवारा पशु के खिलाफ अभियान चलाता है, लेकिन क्या कभी अपने झांसी में ऐसी योजना बनी है, जिसके तहत सड़क पर घूमने वाले गौ वंश सुरक्षित रह सकंे। लोगों को गाय में सारे देवी देवता तो नजर आते हैं, लेकिन उसे बचाने की कोई नहीं सोचता। गौ सेवा के नाम पर कई लोग संगठन चला रहे, तो कुछ गौ शाला खोले हुये हैं।

नगर के किसी भी इलाके में चले जाइये, आपको गौ वंश कचरे के ढेर से खाना खाते नजर आ जाएंगे। गौ वंश को चारा खिलाने का लोगों मे माददा नहीं बचा। कुछ जगह हैं, जहां लोग गाय को चारा खिलाते हैं। सवाल यह है कि क्या हमारी राजनीति केवल इंसानांे के लिये है। जानवरो से उसका कोई सरोकार नहीं। सरकारंे वृद्व को पेन्शन, बेरोजगार को रोजगार, समुदायो को सुरक्षा और बीमार के लिये इलाज आदि की व्यवस्था करने को बचनवद्व है, लेकिन जानवरो को लेकर कोई नीति नहीं? आखिर क्यों? क्या जानवर की देखरेख करने का जिम्मा किसी का नहीं। केवल जानवर को अपने स्वार्थ के लिये पाला जाता है? दूध देती गाय घर मंे रहे, दूध बंद होने पर सड़क पर। यह कहां कीनीति है? क्या हमारे किसी भी जनप्रतिनिधि ने जनपद में जानवरांे खासकर गौ वंश को लेकर कोई नीति तैयार की। उन्हांेने कभी सरकारांे के सामने यह सवाल उठाया कि बुन्देली माटी का गौ वंश सड़कांे पर नहीं रहेगा?

चुनाव में जीत के लिये जिस तरह उमा भारती ने बुन्देलखण्ड के लोगों को बुन्देलखण्ड राज्य के नाम पर गुमराह किया, ठीक उसी तरह भाजपाई गौ वंश सेवा के नाम पर बयानबाजी कर रहे हैं। प्रदेश व देश में सरकार होने के बाद भी आज तक भाजपा का कोई संगठन या माननीय गौ वंश की दुर्दशा पर ध्यान नहीं दे पाया। सीपरी, शहर, सदर, नगरा, आवास विकास से लेकर कालोनियों में घूम रही गायंे, आये दिन किसी न किसी हादसे का शिकार होती हैं। उन्हे पूर्ण मात्रा में न तो भोजन मिल रहा और न ही सुरक्षा। हां, गाय सहित अन्य जानवर पालीथिन के जहर को रोज खाकर काल के गाल में समा रहे हैं। क्या यह उचित नहीं होगा कि माननीय इस दिशा में पहल करंे?

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