विशेष – 68 वाँ गणतंत्र दिवस : गांधी और संविधान, कल और आज !

इस वर्ष जब हमारा अज़ीम मुल्क हिन्दुस्तान अपना ६८ वाँ गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है । ऐसे में आज़ादी के बाद की पीढ़ी में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यह देश गांधी जी का है? देश के वर्तमान संविधान लागू होने से पहले महात्मा गांधी की हत्या किसी बड़ी साजिश का परिणाम तो नहीं? अगर महात्मा गांधी ज़िंदा होते तो क्या संविधान के वर्तमान स्वरूप को स्वीकारते?

अपनी बौध्दिक क्षमतानुसार प्रश्नों के उत्तर खोजने पर दिल यह मानने को मजबूर होता है कि महात्मा गांधी की निर्मम हत्या एक राजनैतिक और वैचारिक हत्या थी । यह उस अज़ीम शख्सियत, उसके विचारों और सिध्दांतों की ह्त्या थी, जिसे दुनिया अपनी सदी का सबसे महान नायक मानती है। किसी ऐसे शख्स की हत्या का प्रयास और अंततः ऐसा कर पाना किसी अकेले नाथूराम गोडसे या उसके कुछ साथियों के बूते की बात हो ही नहीं सकती है। इसलिए इसके पीछे एक दृढ विचारधारा और बहुत मज़बूत संगठन हो सकता था जो गांधी जी की  विचारधारा और उनके सिध्दांतों का कट्टर विरोधी हो और उसने कुछ जुनूनियों का ब्रेन वाश कर उसे इस कुकृत्य के लिए तैयार किया हो, यह तर्क कुछ सही लगता है ।

मदन लाल पाहवा और नाथूराम गोडसे उन्ही संगठन की साज़िश के मुख्य हथियार थे  जनवरी, 1948 में गांधी जी की हत्या की दो कोशिशें हुई थीं. पहली बार एक पंजाबी शरणार्थी मदनलाल पाहवा ने 20 जनवरी को उन्हें मारने की साजिश की । दूसरी कोशिश 30 जनवरी को नाथूराम गोडसे ने की थी जो सफल रही थी ।

यहाँ एक बात यहां बड़ी आश्चर्यजनक लगती है कि गांधी की हत्या के लगभग 28 दिन के अंदर सरदार वल्लभ भाई पटेल इस निष्कर्ष पर पहुच गए थे कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस हत्या के लिए ज़िम्मेदार नहीं है। उन्होंने 27 फ़रवरी 1948 में देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखा था जिसका सार था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नहीं, बल्कि विनायक दामोदर सावरकर के नेतृत्व वाली हिंदू महासभा, गांधी जी की हत्या के षड्यंत्र की ज़िम्मेदार है। उन्होंने यह भी लिखा था कि ‘यह सत्य है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हिंदू महासभा ने गांधी की हत्या पर मिठाई बांटी थी क्योंकि ये दोनों संगठन उनके विचारों से असहमत थे। पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ या हिंदू महासभा के किसी अन्य सदस्य का हाथ इसमें नहीं है ।’ सरदार पटेल तब उपप्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री थे. हो सकता है उनके पास आंतरिक जानकारी हो इसलिए उनकी  बात पर यकीन करना ही पड़ेगा।

आज अगर महात्मा गांधी ज़िंदा होते तो यक़ीनन देश के संविधान का स्वरूप कुछ अलग होता और वे स्वीकृत संविधान का अक्षरतय: पालन करने के लिए सत्ता और विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ अन्य सभी दलों को बाध्य करते अन्यथा सत्याग्रह करते। गणतंत्र दिवस मनाना महज़ औपचारिकता भर न रह जाता। संविधान की शपथ लेकर सत्ता पर काबिज़ होने और बाद में उसी संविधान के प्रावधानों का मखौल उड़ाना सियासतदानों के लिए आसान न होता।

जिस भारत का सपना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने आजादी से पहले देखा था उस सपने को हमारे नीति निर्माताओं ने भारी-भरकम फाइलों के नीचे दबा दिया। आज देश में भ्रष्टाचार हर जगह सर चढ़कर बोल रहा है। एक तरफ जहां हजारों करोड़ से ज्यादा के घोटाले हो रहे हैं तो दूसरी तरफ घोटाले करने वाले दाग़ियों को बचाने के लिए क़ानूनी दांव पेंच खेले जा रहे हैं। एक के बाद एक गवाहों की हत्याऐं हो रही हैं। लेकिन भ्रष्टाचार समाप्ति का दावा कर सत्ता प्राप्त करने वाले सत्ताधीशों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। काले धन को शेख चिल्ली का ख़्वाब बना दिया गया है।

आज़ादी के दौरान जिस व्यवस्था को संविधान के नीति-निर्माताओं ने बनाया था। उसमें आज दोष ही दोष दिखाई दे रहा है, देश में अराजकता, दंगे, भ्रष्टाचार, कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, बलात्कार, शारीरिक शोषण औरदहेज जैसी समस्याएं अभी बरकरार हैं जो बताती हैं कि व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राजनीति को सेवा का माध्यम बनाया था, आज दंगों, अपराधों, हथियारों और बारूद के अनाधिकृत प्रयोग के मास्टर माइंड राजनीति में अहम भूमिका में हैं। महात्मा गांधी ने जिस स्वस्थ समाज की कल्पना की थी वहां हिंसा, घृणा, भ्रष्टाचार, असहिष्णुता ने जगह बना ली है। आज देश में राजनीतिक फायदे के लिए मानवता का लहू बहाया जा रहा है । वर्तमान में राजनीति अपराध का अड्डा बन चुकी है जिसकी वजह से लोगों का राजनीति और राजनेताओं पर से भरोसा उठ चुका है।

बापू ने राष्ट्रहितैषी उद्योगपतियों के धन का उपयोग आम समाज और देश का भला करने में ख़र्च किया था, आज देश और आम आदमी की संपदा कोड़ियों के दाम उद्योगपतियों को दी जारही है। आम आदमी की छोटी-2 सुविधाओं में भी कटौती कर उद्योगपतियों को बड़ी-2 सुविधायें दी जा रही है। उद्योगपतियों के हाथॉ की कठपुतलियां धर्म और विकास का बुर्क़ा पहन कर आम जनता और विशेष कर नौजवानों को गुमराह कर रही हैं।

बापू ने सच को भगवान कहा था आज जो जितना बड़ा झूठा वो उतना बड़ा नेता है। धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की साफ घोषणा करने वाले संविधान अनुसार शपथ लेकर सत्ता संभालने वाले ही धर्म निरपेक्षता का मज़ाक़ उड़ा रहे हैं।

आजादी के एक वर्ष के भीतर ही नाथू राम गोड्से ने गोली मारकर  महात्मा गांधी की एक बार हत्या कर दी थी।

लेकिन आज सच में लगता है गांधीजी मरे नहीं बल्कि हमने उन्हें मार दिया है और हम प्रतिदिन उनकी हत्या कर रहे हैं। नाथू राम गोड्से को राष्ट्रवादी और बहादुर बताने वाले लोक सभा की शोभा (?) बने हुये हैं और गांधीवादी सड़कों की ख़ाक छान रहे हैं । इसे विडम्बना कहें या देश का दुर्भाग्य?

आज गांधीजी की प्रासंगिकता पर बहस छिड़ी हुई है। आंदोलित समूह का हर सदस्य इनके सिद्धांतों का पालन करने का दावा करता है लेकिन जब व्यक्तिगत तौर पर इन आदर्शों के पालन की बात की जाती है तो असहज स्थिति पैदा होती है, यही विरोधाभास तकलीफदेह  है।

गांधी जी के मूल्यों पर चलने का जोखिम युवा वर्ग भी लेना ही नहीं चाहता। गर्म-मिज़ाज और अधिकारों के आगे कर्तव्यों को भूल जाने वाला युवा वर्ग किसी भी कीमत पर अहिंसा के मार्ग पर नहीं चलता । आज एक गाल पर थप्पड़ पड़ने पर दूसरा गाल आगे करने वालों की जगह ईंट का जवाब पत्थर से देने वालों की संख्या कहीं अधिक है।

आज अगर सत्य और अहिंसा का पुजारी मोहन दास करम चंद गांधी ज़िंदा होता तो यक़ीनन इन हालात से दुखी होता। एक ओर संविधानानुसार अनुसूचित जाति – जन जाति और पिछड़ों को आरक्षण की सुविधा, दूसरी ओर विभागों में उनके रिक्त स्थान, बैकलोग ही नहीं भरे जा सके। एक ख़ास वर्ग का हर जगह, हर विभाग में कब्ज़ा।  एक ओर मुसलमानों के तुष्टिकरण का हल्ला, दूसरी ओर मुसलमानों की हालत दलितों से बदतर। अब यह तुष्टिकरण है या शोषण? कोई सुनने को तैयार नहीं। देश और समाज के सर्वागीण विकास के लिए इन  विरोधाभासों का दूर होना नितांत आवश्यक है।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि आज अगर बापू ज़िंदा होते तो या तो वो उपेक्षित कर दिए गए होते या देश की तस्वीर वो होती जिसकी कल्पना बापू और उस ज़माने के शहीदों ने सोची थी।

आइए आज एक प्रण लें कि कम से कम व्यक्तिगत तौर पर हमसे जितना संभव हो सकेगा हम अपने जीवन में गांधीजी के मूल्यों को लाने का प्रयास करेंगे। तभी देश और समाज में शांति और समृध्दि आ सकेगी, इनका सर्वागीण विकास संभव होगा। एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से पूछा गया, “भगवान क्या है?” उन्होंने जवाब दिया “सच ही भगवान है। “  काश, हम उनकी सिर्फ इस सीख पर ईमानदारी से अमल करलें तो देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य का सही निर्वहन कर सकेंगे। देश के लिए शहीद सभी हुतात्माओं और स्वतंत्रता सेनानियों को दिल की गहराईयों से नमन, हिन्दुस्तान ज़िन्दाबाद – जय हिन्द, जय  भारत।

सैयद शहनशाह हैदर आब्दी

समाजवादी चिन्तक झांसी ।

 

 

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