नई दिल्ली 14 अगस्तः भले की मोदी सरकार एससीएसटी ऐक्ट को पुराने स्वरूप मे लाकर दलित वोट बैंक मे सेंध लगाने का काम कर रही हो, लेकिन उसकी पार्टी के सवर्ण और ओबीसी सांसद खासे परेशान हैं। इन सांसदो का दर्द यह है कि वो अपने इस वोट बैंक को सरकार की मंशा नहीं समझा पा रहे।
सवर्ण और ओबीसी की बढ़ती नाराजगी भाजपा के लिये आम चुनाव मे मुसीबत भी बन सकती है। यह बात सांसद भी समझ रहे हैं।
अगले साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने दलित समुदाय से जुड़े दो अहम फैसले लिए हैं. सरकार के इस कदम का मकसद चुनावी राजनीति में दलितों को साधने के मद्देनजर माना जा रहा है. दलितों से जुड़े दोनों मुद्दों पर सरकार द्वारा उठाए गए कदम से सवर्ण समुदाय में अच्छी खासी नाराजगी है.
बलिया के बैरिया से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ उतर आए हैं. पार्टी कार्यकर्ता भी कहीं न कहीं आक्रोशित हैं. पार्टी के सवर्ण नेता खुलकर नहीं बोल रहे हैं, लेकिन दबी जुबान से अपना दर्द बयां कर रहे हैं. आरएसएस की शाखाओं में भी इन दिनों इसे लेकर चर्चा जोरों पर है.
बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा कि एससीएसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सही था जिसके तहत शिकायतकर्ता के आरोपों की जांच के बाद गिरफ्तारी का प्रावधान था. सुरेंद्र सिंह ने संसद के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि सवर्णों को अपने अधिकार और सम्मान के लिए सड़कों पर आना चाहिए.
सुरेंद्र सिंह ने एससी-एसटी एक्ट में हुए बदलाव के लिए सभी पार्टियों को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि क्या पार्टियों को 78 प्रतिशत लोगों के वोट की जरूरत नहीं है जो 22 प्रतिशत दलित वोट के लिए बहुसंख्यक लोगों के साथ अन्याय कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत में दलित वोट की लूट की होड़ मची है, लेकिन चाहे पूरा समाज जल जाए इससे किसी को फर्क नहीं पड़ रहा.
एक बीजेपी सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सवर्ण समुदाय ही नहीं ओबीसी में भी इसे लेकर गुस्सा है. हम लोग कश्मकश की हालत में हैं. सवर्ण समुदाय के बीच जवाब देते नहीं बन रहा है.