हज़रत अली अलैहिस्सलाम एक वैज्ञानिक भी”

आज १३ रजब हज़रत अली अलैहिस्सलाम की विलादत 13 रजब सन 30 आमुल फ़ील को जुमा के दिन ख़ाना-ए-काबा के अन्दर हुई। इसी लिये आपको “ मौलूदे-काबा” भी कहा जाता है। इतिहास के लिखने वालों ने आपके ख़ाना-ए-काबा में पैदा होने के बारे में कभी किसी तरह का इख़्तिलाफ़ नहीं किया बल्कि हर एक कहता है कि न अली (अलै0) से पहले कोई काबे में पैदा हुआ न कभी होगा (मसतदरक हाकिम जिल्द सोम सफ़्हा- 483) ।

हजरत अली (अलै0) वे पहले मुसलमान थे जिन्हें पैगम्बर मुहम्मद साहब ने इस्लाम की शिक्षा दी। जब पैग़म्बर मुहम्मद (स.) ने इस्लाम का सन्देश दिया तो कुबूल करने वाले हज़रत अली (अलै0) पहले व्यक्ति थे। दुनिया उन्हें महान योद्धा और मुसलमानों के ख़लीफ़ा के रूप में जानती है। इस्लाम के कुछ फिरके उन्हें अपना पहला इमाम तो कुछ उन्हें वली के रूप में मानते हैं।

आप के दादा अब्दुल मुत्तलिब और वालिदा फ़ातिमा बिन्ते असद थीं। आप दोनों तरफ़ से हाशमी हैं। हज़रत अली (अलै0) इब्ने अबी तालिब (अ.स.) पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.) के चचाजाद भाई और दामाद थे। आप रसूले ख़ुदा मोहम्मद मुस्तफा के वास्तविक उत्ताराधिकारी हैं।

लेकिन यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हज़रत अली (अलै0) एक महान वैज्ञानिक भी थे और एक तरीके से उन्हें पहला मुस्लिम वैज्ञानिक कहा जा सकता है।

हज़रत अली (अलै0) ने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया।

एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी पूछी तो जवाब में बताया की एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है। उनके इस कथन के चौदह सौ साल बाद वैज्ञानिकों ने जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई। अगर अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा ली जाए तो यही दूरी निकलती है।

इसी तरह एक बार अंडे देने वाले और बच्चे देने वाले जानवरों में फर्क इस तरह बताया कि जिनके कान बाहर की तरफ होते हैं वे बच्चे देते हैं और जिनके कान अन्दर की तरफ होते हैं वे अंडे देते हैं।

हज़रत अली (अलै0) ने इस्लामिक थियोलोजी (अध्यात्म) को तार्किक आधार दिया। कुरान को सबसे पहले कलमबद्ध करने वाले भी हज़रत अली (अलै0) ही हैं। बहुत सी किताबों के लेखक हज़रत अली (अलै0) है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-

1) किताबे अली (अलै0)

2) जफ्रो जामा (Islamic Numerology पर आधारित) इसके बारे में कहा जाता है कि इसमें गणितीय फार्मूलों के द्वारा कुरआन मजीद का असली मतलब बताया गया है। तथा क़यामत तक की समस्त घटनाओं की भविष्यवाणी की गई है। यह किताब अब अप्राप्य है।

3) किताब फी अब्वाबुल शिफा

4) किताब फी ज़कातुल्नाम

हज़रत अली (अलै0) की सबसे मशहूर व उपलब्ध किताब “नहजुल बलाग़ा” है, जो उनके खुत्बों (भाषणों) का संग्रह है। इसमें भी बहुत से वैज्ञानिक तथ्यों का वर्णन है।

माना जाता है कि जीवों में कोशिका (cells) की खोज 17 वीं शताब्दी में लीवेन हुक ने की। लेकिन नहजुल बलाग़ा का निम्न कथन ज़ाहिर करता है कि हज़रत अली (अलै0) को कोशिका की जानकारी थी। “जिस्म के हर हिस्से में बहुत से अंग होते हैं। जिनकी रचना उपयुक्त और उपयोगी है। सभी को ज़रूरतें पूरी करने वाले शरीर दिए गए हैं। सभी को काम सौंपे गए हैं और उनको एक छोटी सी उम्र दी गई है। ये अंग पैदा होते हैं और अपनी उम्र पूरी करने के बाद मर जाते हैं। (खुतबा-71) ” स्पष्ट है कि ‘अंग’ से हज़रत अली (अलै0) का मतलब कोशिका ही था।

हज़रत अली (अलै0) सितारों द्बारा भविष्य जानने के खिलाफ़ थे, लेकिन खगोलशास्त्र सीखने पर राज़ी थे, उनके शब्दों में “ज्योतिष सीखने से परहेज़ करो, हाँ इतना ज़रूर सीखो कि ज़मीन और समुन्द्र में रास्ते मालूम कर सको।” (77 वाँ खुतबा – नहजुल बलाग़ा)

इसी किताब में दूसरी जगह पर यह कथन काफी कुछ आइन्स्टीन के सापेक्षकता सिद्धांत से मेल खाता है, ‘उसने मख्लूकों को बनाया और उन्हें उनके वक़्त के हवाले किया।’ (खुतबा – 1)

चिकित्सा का बुनियादी उसूल बताते हुए कहा, “बीमारी में जब तक हिम्मत साथ दे, चलते फिरते रहो।”

ज्ञान प्राप्त करने के लिए हज़रत अली (अलै0) ने अत्यधिक जोर दिया, उनके शब्दों में, “ज्ञान की तरफ बढो, इससे पहले कि उसका हरा भरा मैदान खुश्क हो जाए।”

अपने दौरे हुकूमत में आपने अपने गवर्नर मालिके अशतर को पत्र लिखकर कहा,” देखो, तुम्हारी प्रजा में दो तरह के लोग हैं एक वो जो तुम्हारे धर्म के मानने वाले हैं, दूसरे वो जो तुम्हारे धर्म के मानने वाले नहीं हैं।“ आपने स्पष्ट निर्देश दिया कि धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव न करना।

यह विडंबना ही है कि मौजूदा दौर में मुसलमान हज़रत अली (अलै0) की इस नसीहत से दूर हो गया और आतंकवाद जैसी अनेकों बुराइयां उसमें पनपने लगीं। अगर वह आज भी ज्ञान प्राप्ति की राह पर लग जाए तो उसकी हालत में सुधार हो सकता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर पुनः बधाई देते हुए अपनी बात को उन्हीं के एक कथन से समाप्त करना चाहूंगा। इमाम अली अलैहिस्सलाम का मानना था कि आपसी मतभेदों से दूर रहने में ही किसी राष्ट्र की एकता, संभव है। इस बारे में वे कहते हैं कि निश्चित रूप से अबतक कोई भी राष्ट्र विशेष आकांक्षाओं पर एकजुट नहीं हो सका मगर इस दशा में कि वह सशक्त हुआ और उसका परस्पर सहयोग सुदृढ़ हुआ और किसी राष्ट्र को शक्ति और सम्मान नहीं मिला परन्तु इस स्थिति में कि ईश्वर ने उससे समस्याओं को हटा लिया और अपमान को उससे दूर कर दिया और उसका मार्गदर्शन, धर्म की निशानियों की ओर किया।

हज़रत अली (अलै0) को हम हिन्दुस्तानियों की सच्ची श्रृध्दांजली यही होगी कि हम एक रहें, नेक रहें और मानवीय संवेदनाओं के साथ राष्ट्रहित सर्वोपरि रखें।

सैय्यद शहनशाह हैदर आब्दी
वरिष्ठ समाजवादी चिंतक
निवास-“काशाना-ए-हैदर”
291-लक्ष्मन गंज – झांसी (उ0प्र0)
मो.न.09415943454.
शिविर – गोवाहाटी – असम

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