*26 दिसंबर — वीर बाल दिवस*
दशम गुरु एवं खालसा पंथ के संस्थापक श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने स्वयं धर्म के लिए अपना बलिदान दिया था, वहीं उनके पिता नवम गुरु श्री तेग बहादुर जी ने सनातन हिन्दू धर्म के लिए ही अपना शीश अर्पण कर दिया था तथा गुरु गोविंद सिंह जी के चारों पुत्रों ने अपने धर्म के लिए प्राण न्योछावर किए थे।
भारत को छोड़कर संपूर्ण विश्व के इतिहास में एक ही परिवार की तीन पीढि़यों के लोग धर्म के लिए प्राण- उत्सर्ग किये हों – ऐसा उल्लेख नहीं मिलता है।
दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी के चार सुपुत्र – अजीत सिंह , जुझार सिंह , जोरावर सिंह और फतेह सिंह – को सामूहिक रूप से ” चार साहिबजादे ” शब्द से संबोधित किया जाता है।
26 दिसंबर 1705 को साहिबजादा फतेह सिंह और उनके बड़े भाई साहिबजादा जोरावर सिंह सरहिंद में शहीद हो गए थे। साहिबजादा फतेह सिंह शायद दुनिया के इतिहास में सबसे कम उम्र के शहीद हैं , जिन्होंने 6 वर्ष की आयु में धर्म के लिए अपनी शहादत दी थी।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 2022 में श्री गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के शुभ अवसर पर घोषणा की थी कि साहिबजादा जोरावर सिंह और साहबजादा फतेह सिंह की शहादत की याद में 26 दिसंबर को
*” वीर बाल दिवस “*
के रूप में मनाया जाएगा।
गुरु के दोनों छोटे बेटे और उनकी दादी एक गांव में शरणागत थे। गुरु के पूर्व रसोईया गंगू ने लालच में आकर इन सभी को वजीर खान को सौंप दिया। वजीर खान के सामने दोनों को लाया गया। दोनों को वजीर के सामने सिर झुकाकर सलामी देने को कहा गया। दोनों ने सिर ऊंचा करके जवाब दिया – ” हम अकाल पुरख और अपने गुरु पिता के अलावा किसी के भी सामने सिर नहीं झुकाते। ऐसा करके हम अपने दादा की कुर्बानी को बर्बाद नहीं होने देंगे। यदि हमने किसी के सामने सिर झुकाया , तो अपने दादा को क्या जवाब देंगे , जिन्होंने धर्म के नाम पर अपना सिर कलम करवाना उचित समझा , लेकिन सिर झुकाना सही नहीं समझा। ”
वजीर खान ने दोनों को काफी धमकाया और डराया कि वे इस्लाम कबूल कर लें। इस पर दोनों साहिबजादों ने जो कहा , एक कवि की दृष्टि में इस प्रकार है –
कुत्ते तो विष्ठा खाते हैं , सिंह कभी नहीं खाएंगे।
हम हैं बालक सिख कभी , इस्लाम नहीं अपनाएंगे।।
दोनों के अडिग एवं निर्भीक व्यवहार को देखकर वजीर ने दोनों साहबजादों को जिंदा दीवारों में चुनवाने का आदेश दिया।
जब ईंट की दीवार फतेह सिंह के नाक तक पहुंच गया , तब बड़े भाई साहिबजादा जोरावर सिंह की आंख से अश्रुपात होने लगा। यह देखकर वजीर ने सोचा कि लगता है बड़ा भाई डर गया है , इसलिए रो रहा है। लेकिन जोरावर सिंह ने जो जवाब दिया वह स्वर्णाक्षरों में अंकित करने लायक है। उसने कहा – ” मैं फतेह सिंह से 2 वर्ष पहले इस संसार में आया, लेकिन मुझसे पहले , मेरा छोटा भाई अपने धर्म के लिए शहीद हो रहा है। मुझे अपने छोटे भाई से पहले शहीद होने का सौभाग्य नहीं मिल रहा है , अतः आंख से अश्रुपात हो रहा है। ” 8 साल के बालक के मुंह से यह सुनकर सभी दंग रह गए।
दोनों ने धर्म के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया।
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत् गीता में कहा है –
स्वधर्मे निधनम् श्रेय: परधर्मो भयावह:।
उपर्युक्त भगवत् वाणी को वास्तव में इन दोनों ने ही आत्मसात कर अपने जीवन में उसे चरितार्थ किया था।