झांसीः चुनाव नेताओ की जुबां पर पानी ला देता है। यह बात प्रदीप जैन आदित्य के मैदान मे आने के बाद नजर आने लगी है। पहले दिन से ही प्रदीप जैन लोगो की जुबां पर छा गये हैं। मंत्रीजी भी मैदान मे । दूसरे प्रदीप का मुकाबला कैसे करंेगे। बीजेपी के लिये मुश्किल की घड़ी आ गयी? अब प्रदीप को यह दिन देखने को मिल रहे। अपनी मिटटी कुटवा लेगे। सबसे अच्छा प्रत्याशी प्रदीप ही है।
कुल मिलाकर जितने मुंह उतनी बाते। यानि हर जुबां प्रदीप जैन।
कल जिस तरह से प्रदीप जैन आदित्य को प्रस्ताव के जरिये मेयर पद के लिये प्रत्याशी तय किया गया, उसमंे कई झोल नजर आ रहे हैं। यह बाते कहते हुये लोग अपने तरीके से तर्क गढ़ रहे हैं। पहला यह कि क्या वाकई प्रदीप जैन मेयर पद के लिये तैयार हैं? क्या उन्हे उनकी सहमति से प्रत्याशी बनाया गया या? तीसरा यह कि प्रदीप अपनी तैयारी के जरिये दूसरे को मैदान मे उताने की रणनीति पर काम कर रहे हैं?
सबसे पहले प्रदीप जैन के चुनावीमैदान मे आने की बात करे। कांग्रेस से मेयर पद के लिये कई दावेदार हैं। इनमंे डॉ. सुनील तिवारी, मनोज गुप्ता, अरविंद वशिष्ट, चन्द्रशेखर तिवारी, इम्तियाज हुसैन, विजित कपूर आदि। इन सबने अचानक मिलकर यह फैसला कैसे कर लिया कि प्रदीप के अलावा कोई दूसरा चेहरा नहीं हो सकता?
क्या यह कांग्रेस की रणनीति है? दूसरा यह कि प्रदीप जैन आदित्य इस गोट के जरिये दूसरे प्रत्याशी का नाम दूसरे दलो से छिपाकर अचानक धमाका करने की तैयारी मे हैं?तीसरा यह कि वो खुद मैदान मे आने से पहले घर के अंदर के विरोध के सार्वजनिक प्रत्याशी बनकर दबाने मे कामयाब होगे?
इसके अलावा एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या कांग्रेस मे प्रदीप जैन युग को समाप्त करने की तैयारी चल रही है? क्यांेकि सांसद और केन्द्रीय मंत्री रह चुके प्रदीप जैन का मैदान मे लाना एक रहस्य की तरह है। प्रस्ताव भी ऐसे लोगो ने पास किया, जो सार्वजनिक रूप से प्रदीप जैन के विरोधी हैं।
यानि इशारे काफी कुछ कह रहे हैं।वहीं प्रदीप जैन के लिये यहतर्क हो सकता है कि जब भाजपा का मेयर डिप्टी सीएम बन सकता, तो प्रदीप जैन मेयर का चुनाव क्यो नहीं लड़ सकते। शहर के विकास का मुददा उनके लिये अपने करियर मंे सबसे अहम है? यानि प्रदीप इन तीन परिस्थितियो मे से किसका चयन करते हैं, यह एक दो दिन मे साफ हो जाएगा।
अभी तो बाजार मे प्रदीप जैन चल रहे हैं?