हज़रत इमाम हुसैन और उनके बहत्तर साथियों द्वारा, इंसानी क़द्रोक़ीमत की हिफाज़त के लिये दी गई अज़ीम क़ुरबानी के याद में मनाये जाने वाले “चेहल्लुम” की दूसरी मजलिस में इमाम हुसैन की “दोस्ती, भाईचारा और आपसी विश्वास” को याद किया गया। मजलिस “इमाम बारगाह नूर मंज़िल” दरीगरान झांसी में आयोजित की गई, जिसमें हजारों श्रृध्दालुओं ने शिरकत की। मर्सियाख्वानी इं0 काज़िम रज़ा, हाजी तक़ी हसन, सईदुज़्ज़मां, अस्करी नवाब, और साथियों ने की और “चला दुनिया से मैं कहता हुआ हुसैन – हुसैन।
शुरु मैने किया यह मर्सिया हुसैन – हुसैन।।” मर्सिया पढा। आठ वर्षीय ताहा अब्बास ने सलाम “ दीने ख़ुदा सुकून के साये में आगया – जब से मिली है उसको हिफाज़त हुसैन की” पढकर श्रृध्दांजली अर्पित की। पेश ख़ानी, जनाब फैज़ अब्बास, अल्बाश आब्दी, वसीम रज़ा और, ज़ामिन अब्बास आब्दी ने कर, कलाम पढ़े। अध्यक्षता मौलाना सैयद शाने हैदर ज़ैदी ने की। तदोपरांत सैथल से विशेष निमंत्रण से पधारे मौलाना सैयद अली इफ्तिख़ार ‘फराज़’ वास्ती साहब ने,”फलसफा-ए-इबादत” की व्याख्या करते हुये कहा “अल्लाह की इबादत– पवित्रता, विनम्रता और सत्य का सबक़ देती है। यह आदमी के दिल में अल्लाह का डर पैदा करती है, जिससे आदमी ईमानदार और सत्य मार्गी हो जाता है।”
उन्होंने आगे कहा इमाम हुसैन ने अल्लाह की इबादत को भली भांति समझ कर ही इस्लाम की रक्षा के लिये अहिंसा के मार्ग को अपनाया। उन्होंने करबला के मैदान में “दोस्ती, भाईचारा और आपसी विश्वास” की नई इबारत लिखी। इसी लिये करबला को इंसानियत की पाठशाला भी कहा जाता है।
हम इसे भली भांति समझकर देश, परिवार और समाज का भला कर सकते हैं।“ इसके बाद मौलाना साहब ने इमाम हुसैन की मुश्किलों और अत्याचारों का वर्णन किया। नौहा-ओ-मातम अंजुमने सदाये हुसैनी के मातम दारों ने किया।नौहा ख़्वानी सर्वश्री अली समर, अनवर नक़्वी, साहिबे आलम ने की ।
संचालन सैयद शहनशाह हैदर आब्दी ने और आभार सग़ीर मेहदी ने ज्ञापित किया। इस अवसर बडी संख्यामें इमाम हुसैन के अन्य धर्मावलम्बी अज़ादार और शिया मुस्लिम महिलाऐं बच्चे और पुरुष काले लिबास में उपस्थित रहे।