झांसीः एक तरफ जहां बसपा प्रमुख मायावती संगठन और अपने जनाधार को बचाने की जददोजहद कर रही हैं, वहीं जिला स्तर पर सही जिलाध्यक्ष चुनना उनके लिये कठिन होता जा रहा है।
बुन्देलखण्ड मे झांसी जिला इसका उदाहरण है। एक साल के भीतर तीसरी बार जिलाध्यक्ष पद पर मनोनयन की प्रक्रिया करना पड़ी। सवाल है कि आखिर ऐसा क्यो करना पड़ रहा?
दरअसल, बुन्देलखण्ड के झांसी मे बसपा के अंदर जबरदस्त खींचतान है। सवर्ण पदाधिकारियो और पार्टी कैडर के लोगो के बीच संवादहीनता चरम पर है।यही कारण है कि बसपा का अपना कार्यकर्ता दोनो के बीच फंस गया है।
जिलाध्यक्ष को पार्टी से मिलने वाले दिशा-निर्देश को लागू करने मे सबसे बड़ी बाधा पार्टी के ही बड़े पदाधिकारी है। इनकी मंशा यह होती है जिलाध्यक्ष भी उनकी मर्जी से चले।
पिछले कुछ दिनो मे बसपा के अंदर इस बात को लेकर चर्चा है कि अब संगठन को सभालने मे यदि उपर से सख्ती नहीं हुयी, तो जनाधार को बचाने से रोकना मुश्किल होगा। बसपा के पास केवल परंपरागत वोट ही नहीं है, जो पार्टी नेताओ की खींचतान नाराज हो। दूसरे वर्ग के लोग भी हैरान है। माना जा रहा है कि जिलाध्यक्ष पद पर बदलाव पार्टी के लोकसभा और विधानसभा चुनाव मे टिकट के अंतिम समय तक फाइनल ना होने वाली स्थिति मे पहुंच गया है। पता नहीं किस पदाधिकारी को कब बदलना पड़ जाए। शिकायत और शिकवे मे फंस पदाधिकारी अपने की दल को निशाने पर लिये हुये हैं।
कहा जाता है कि झांसी मे बसपा की कमान चंद ऐसे नेताओ के हाथ मे है, जो उपर ऐसा फीडबैक देते है कि काम करने वाला पदाधिकारी भी कब निशाने पर आ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।
रही बात जिलाध्यक्ष की। रामबाबू पुराने कार्यकर्ता है। वैसे सर्वमान्य हो, यह उनके लिये भी मुश्किल भरा है। यानि माना जा सकता है कि लोकसभा चुनाव से पहले एक और जिलाध्यक्ष देखने को मिल सकता है।