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झाँसी- अभी से दुत्कार? बंगला नहीं , कार्यालय पर मिलो, रिपोर्ट-रोहित,सत्येन्द्र,देवेंद्र

झांसी। कहते हैं कि बड़े लोगों को भीड़ रास नहीं आती है। मौके वे मौके पर सार्वजनिक जिंदगी को देखने वाले ज्यादा देर हो हल्ला बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं । शायद ऐसा ही कुछ भाजपा प्रत्याशी अनुराग शर्मा के साथ हो रहा है । प्रत्याशी बनने की घोषणा के बाद जिस तरह से अनुराग शर्मा के बंगले को खुले दरबार के रूप में तब्दील कर दिया गया था और लोगों ने बंगले में खुले भाव के साथ विचरण करते हुए यह एहसास करने की कोशिश की थी कि कोई बड़ा आदमी अब उनके साथ दुख दर्द को साझा करने के लिए सीधा संवाद कर सकता है। लेकिन आम आदमी की यह मंशा दो दिन बाद ही धूमिल होती नजर आने लगी जब उसे यह बताया गया कि अब बंगला नहीं कार्यालय पर मुलाकात होगी।

इन दिनों सोशल मीडिया पर भाजपा प्रत्याशी की एक पोस्ट जारी हो रही है , जिसमें कहा गया है कि खुला दरवाजा सबका सम्मान , अनुराग भैया की यही पहचान । यह पोस्ट अनुराग शर्मा के भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने वाले दिन बिल्कुल सही साबित हो रही थी । बंगले पर भीड़ स्वतंत्र रूप से आ जा रही थी और प्रत्याशी हर छोटे-बड़े से लेकर पदाधिकारी विधायक व्यापारी सामाजिक संगठनों के लोगों से मुलाकात कर रहे थे।

हालांकि अनुराग की मुलाकात करने का सिलसिला अभी भी जारी है, लेकिन खुले दरबार को फिर से पुरानी अवस्था में लाने की कोशिश शुरू हो गई है । बंगला खुला है , लेकिन भीड़ को कंट्रोल करते हुए उसे कार्यालय में शिफ्ट किया जा रहा है । यहां एक बात गौर करने लायक यह भी है कि भाजपा प्रत्याशी ने कार्यालय दूसरी जगह ले जाने के लिए भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय की जगह अपने ही एक निवास को कार्यालय के रूप में तब्दील कर दिया ।

दूर हुए गांव की तरह कार्यालय दूर होने से उमड़ने वाली भीड़ जहां संख्या बल में आधे से भी कम रह गई, वही इसका असर यह हुआ कि जो समर्थन का सिलसिला अनुराग के साथ तेजी से जुड़ रहा था बह बंगला एकांतवास की स्थिति में लाने के चक्कर में कहीं खोता हुआ नजर आ रहा है?

आज स्थिति यह हो गई है कि भाजपा प्रत्याशी के निवास पर समर्थकों की संख्या नगण्य हो गई है । कार्यालय में भी यह संख्या पहले जैसी नजर नहीं आ रही है। लोग आते हैं जाते हैं , लेकिन उन्हें क्या जरूरत है और प्रत्याशी से दुख दर्द कहने के लिए कौन सा समय है यह नहीं पता है । ऐसे में लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्यों बड़े लोग अपने दरबान को लेकर अपनी ओर से सफाई पेश करते हैं।

लोग कह रहे हैं कि खुला दरवाजा सबका सम्मान, कितने दिनों तक रहेगी इस व्यवस्था की पहचान?,

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