झांसीः वैसे तो पार्टी के प्रतिनिष्ठावान होने की कला कोई गोकुल दुबे से सीखे। सपा मे रहे, तो पूरे मनोयोग के साथ। चन्द्रपाल सिंह यादव से सीधे लड़ गये। भले ही अंजाम कुछ हुआ हो, लेकिन मनमौजी मिजाज वाले गोकुल दुबे आज नगर निगम मे कार्यकारिणी सदस्यो की कलाबाजी मे बपर्दा से होते नजर आये। आरोप सीधा नहीं लगा, लेकिन हवा मे फैल रही संभावनाओ मे दबे परिवार के कलर बदलने की चर्चा तेज हो गयी है। क्या माना जाए कि ऐसा होगा?
कहते है कि राजनीति और जंग मे सब जायज है। अपनी दम पर वार्ड से लगातार पांचवी बार जीत हासिल करने वाली सभासद सुशीला दुबे का आज राजनैतिक घटनाक्रम बेहद चैंकाने वाला रहा।
सुशीला दुबे की राजनैतिक पारी मे पर्दे के पीछे से संचालन की भूमिका मे रहने वाले गोकुल दुबे का दांव किसी की समझ मे नहीं आया। हां, यह संकेत जरूर दे गया कि दुकानदारी बनाये रखने के लिये मजबूरी और संबंध निभाने पड़ते हैं। शायद इसका परिणाम आने वाले दिनो मे नजर आये।
वैसे आपको याद होगा कि मेयर चुनाव मे सुशीला दुबे ने बसपा को किस तरह आईना दिखाया था।
राजनैतिक मंच पर आहिस्ता-आहिस्ता मजबूत होने की दिशा मे आगे बढ़ रही सुशीला दुबे का आज नगर निगम मे कार्यकारिणी चुनाव मे पांसा ना फेंकना पति और परिवार के लिये कुर्बानी माना जा रहा है!
जानकार मान रहे है कि बड़े नेता के साथ हुयी पर्दे के पीछे की सुलह मे काफी राज छिपा है?
मालूम हो कि बुधवार को नगर निगम की पहली कार्यकारिणी सदस्य का निर्वाचन हुआ। सभी दलों के पार्षद व नेता अपनी रणनीति तैयार करते रहे। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपने अधिकतम सदस्य जिताने की रणनीति भी बनाई, मगर निर्दलीय और बसपा ने उनका खेल बिगाड़ दिया और सात सदस्य जिताने की मंशा धरी रह गई। मालूम हो कि सदन में भाजपा के 21, बसपा के 11, कांग्रेस 6, सपा व कांग्रेस के 2-2 एवं निर्दलीय 18 पार्षद हैं। ऐसे में भाजपा अपने संख्या बल के आधार पर उप सभापति की कुर्सी के लिए अभी से क्लीन स्वीप करने की तैयारी में थी। मगर निर्दलीयों व बसपा ने उसका गणित बिगाड़ दिया।
सुबह से भाजपा ने अपने केवल पांच प्रत्याशी ही मैदान में उतारे। इनमें अविनाश यादव, कांति छत्रपाल, दिनेश प्रताप सिंह बुंदेला, लखन कुशवहा व विद्या प्रकाश दुबे का नामांकन कराया गया। इसी प्रकार कांग्रेस से अब्दुल जाबिर व विकास खत्री, बसपा से जुगल किशोर व महेश गौतम एवं निर्दलियों में सुशीला दुबे, रामकुमारी यादव, दिनेश सिंह उर्फ दीपू यादव एवं अनिल सोनी ने नामांकन किया।
अब एक नामांकन अधिक होने से निर्विरोध निर्वाचन में अड़ंगा लग गया। सभी प्रत्याशियों की बैठक हुई और मेयर ने भी मध्यस्थता की। सूत्रों के अनुसार राजनैतिक दबाव व क्षेत्र में अधिक विकास से संबंधित काम दिए जाने एवं पर्दे के पीछे की रणनीति काम आई और निर्दलीय प्रत्याशी सुशीला दुबे नाम वापसी के लिए तैयार हो गई।
इस मान-मनौव्वल में नाम वापसी का समय निकल गया और निर्धारित समय से पंद्रह मिनट देर से वह नाम वापस लेने रिटर्निंग आफीसर के पास पहुंची। इस पर रिटर्निंग ऑफीसर ने आपत्ति जताई। एक बार फिर मेयर और सदन में भाजपा के उप नेता दिनेश प्रताप सिंह बुंदेला ने मोर्चा संभाला। आखिर सुशीला दुबे ने एक बार फिर चुनाव न लडऩे की सहमति जताते हुए रिटर्निंग ऑफीसर से संपर्क किया और उनकी नियमों व प्रावधान के तहत मान ली गई। इस पर प्रकार बिना मतदान कराए ही शेष बचे सभी 12 प्रत्याशियों को कार्यकारिणी सदस्य के लिए निर्वाचित घोषित कर दिया गया।