झांसी मे योगी सरकार के दावो की तस्वीर!

झांसीःदेश को आजाद हुये 70 साल का समय निकल गया। उम्र को जवानी के नजरिये से देखो, तो बुढ़ापे की दहलीज नजर आएगी। कहते है कि अभी तो देश जवान है। माना जवानी का जोश हमारे कंधे मजबूत बनाये है, लेकिन हालातो  से लड़ने की क्षमता सरकारो  के मन से शायद निकल गयी है। सड़क, गलियां, गांव और शहर। हर जगह गरीबी की दयनीय स्थिति नजर आती है। फिर भी कहना पड़ता है-राजनीति विकास के लिये दौड़ है?

प्रदेश मे पिछले कई दशको  से राजनैतिक प्रयोग होते रहे हैं। सोशल इंजीनियरिंग के सहारे सत्ता के पायदान पहुंची बसपा। एमवाई समीकरण की नयी परिभाषा से जीत का वरण करने वाली सपा। इससे इतर जातीय समीकरण मे सेध लगाकर चैकाने वाली जीत हासिल करने वाली भाजपा।

प्रदेश मे सत्ता किसी दल के हाथ दे दो। गरीबो  को जिन्दगी बदहाली मे ही गुजारना पड़ रही है।

तन कमजोर है, मन विचलित, वस्त्र फटे और बेबसी का मंजर। जीहां, सही पढ़ रहे हैं आप। देश की गरीबी का एक बड़ा हिस्सा बुन्देली माटी के माथे पर बोझ के समान है।

आर्थिक हालात का चक्र सरकार अपने अंदाज में घुमाती है, लेकिन इसके दायरे मे गरीब और कमजोर नहीं आ पा रहे। शोर हुआ, तो ठंड से कांपते बदन सरकार की मेहरबानी की आग मे उन हालातो  मे राहत पाते है, जिसमे गधे और घोड़े एक समान वाली कहावत नजर आती है।

बुन्देली माटी का दुर्भाग्य ही है कि इस धरती पर आज की डेट मे प्रदेश व देश की भाजपा सरकार के कददावर नेताओ  की फौज है। इसके बाद भी किसी को गरीब की ओर नजरे इनायत करने की फुर्सत नहीं।

समारोह मे फीता कट रहे। योजनाओ  का शिलान्यास हो रहा। गरीब की ना तो सूरत बदल रही और ना ही तकदीर! कौन सी ऐसी योजना नहीं है सरकारो  के पास, जो गरीब के दरवाजे से होकर ना निकलती हो। चाहे वृद्वावस्था पेशन, भूखे के लिये भोजन की व्यवस्था। बीमार को निशुल्क इलाज। बावजूद इसके गरीब आज भी सर्दी, गर्मी और बारिश मे खुले आसमान कहे या विषम हालातो  मे जीवन यापन करने को मजबूर है।

यहां सवाल यह है कि क्या कभी गरीब और कमजोर तबके के लिये बनायी जाने वाली योजनाएं वास्तविक लोगो  तक पहुंचेगी?

 

 

 

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