झांसी मुफ्ती मुहम्मद अमान सिद्दीकी मंजरी
बानी व सदर सुन्नी नूरी दार उल इफ्ता
पेश इमाम मदीना मस्जिद मरकज अहले सुन्नत वल जमात कपूर टेकरी कुरैश नगर ने रमजान का असल मकसद अपने आप को बेहतर इंसान बनाना, समाज की भलाई के लिए काम करना और जरूरतमंदों, कमजोरों और बेसहारा लोगों का सहारा बनना है। इससे खुदा को राजी करके हम एक खूबसूरत माहौल बनाने में, सच्ची इबादत और मदद के साथ जिंदगी जीने में सफल हो सकेंगे। आलिमों ने कहा कि रोजे रखने का असल मकसद महज भूख-प्यास बर्दाश्त करना नहीं है, बल्कि रोजे की रूह दरअसल नफ्स पर काबू, अल्लाह के तरीके पर अकीदत से जकात और सदके की हिदायत उन लोगों की मदद का जरिया है जो आर्थिक तंगी से खस्ताहाल जीवन गुजार रहे हैं।
मुफ्ती मुहम्मद अमान सिद्दीकी मंजरी ने हदीस के हवाले से बताया कि जिस तरह हर मुसलमान के लिए रोजों को फर्ज किया गया है, उसी तरह हर संपन्न मुस्लिम पर सदका और जकात लाजिमी है, ताकि रमजान की रौनक से गरीबों की मदद हो सके। खुद को खुदा की राह में इबादत के लिए लगाना पाक महीना माह-ए-रमजान न सिर्फ रहमतों और बरकतों की बारिश करता है, बल्कि समूची इंंसान की कौम को प्यार, भाईचारे और इंसानियत का भी पैगाम देता है। इस पाक महीने में अल्लाह अपने बंदों पर रहमतों का खजाना लुटाता है और भूखे-प्यासे रहकर खुदा की इबादत करने वालों के गुनाह माफ हो जाते हैं।
मुफ्ती मुहम्मद अमान सिद्दीकी मंजरी मरकाज अले सुन्नत वल जमात ने सुन्नी मुसलमान रोजेदारों के सामने दुनिया की सारी अच्छी चीजें रखी हों पर वह खुदा की बिना इजाजत के बिना उसे हाथ तक नहीं लगाता। यही सब चीजें एक रोजेदार को खुदा के नजदीक लाती हैं। रमजान का महीना हर इंसान को अपनी जिंदगी को सही राह पर लाने का पैगाम देता है।
सबील उल फलाह हर्रा के रमजान का महीना तमाम इंसानों के दुख दर्द और भूख-प्यास को समझने का महीना है। ताकि रोजेदारों में भले-बुरे को समझने की सलाहियत पैदा हो। बुराई से घिरी इस दुनिया में रमजान का पैगाम और भी खास हो गया है। इंसानियत की कौम अपनी नफ्स पर काबू पाने का पैगाम देने वाले रोजे का रुतबा और भी बढ़ जाता है। रमजान की फजीलतों (महत्व) के बारे में कहा कि आमतौर पर साल के 11 महीने तक इंसान दुनियादारी के मसलों में फंसा रहता है। लिहाजा अल्लाह ने रमजान का महीना सादगी के साथ इबादत के लिए तय किया है।
उन्होंने बताया कि रमजान के मायने संपन्न लोगों को भी भूख-प्यास का अहसास कराकर पूरी कौम को अल्लाह ताआला के करीब लाकर नेक राह पर डालना है। साथ ही यह महीना इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को इम्तिहान के लिए सुधार करने का मौका भी देता है। रमजान का महीना सबसे बड़ी आसमानी किताब यानी कुरान शरीफ को दुनिया पर नाजिल किया था। रहमत और बरकत के नजरिये से रमजान के महीने को तीन हिस्सों (असरों) में बांटा गया है। इस महीने के पहले दस दिनों में अल्लाह अपने रोजेदार बंदों पर रहमतों की बारिश करता हैं। दूसरे असरे में अल्लाह रोजेदारों के गुनाह माफ करता है और तीसरा असरा दोजख की आग से निजात पाने की इबादत के लिए तय किया गया है।
दुनिया और आखिरत को संवारती है रमजान की इबादत मुफ्ती अमान सिद्दीकी
