प्रस्तुति- चंचल चौधरी
एक दिन माँ खीर बना रही थी. … उसका बच्चा कहीं खेलते – खेलते गिर पड़ा और बड़ी जोर से चीख कर रोने लगा, माँ खीर को छोड़कर भागी और बच्चे को उठा लिया तब तक खीर में उबाल आ गया और सारी खीर उफान से जमीन पर गिर गई ।
माँ ने बच्चे को चुप कराया, उसे मिठाई दी और जो थोड़ी सी खीर बची थी उसे ठंडा करके बच्चे को खिलाया. बच्चा बोला की माँ तुम मुझे इतना चाहती हो की तुमने खीर को भी कुछ नहीं समझा। माँ बोली – “हाँ बेटा.”
बच्चा फिर खेलने लग गया।
एक दिन बच्चे ने सोचा की उस दिन तो माँ ने बहुत प्रेम किया था और खीर भी खिलाई थी, आज कई दिनों से खीर भी नहीं बनी. यह सोच वह जानबूझ कर जमीन पर गिर पड़ाऔर बड़ी जोर से “चिल्लाने लगा, माँ चौके मैं बैठी रही और टस से मस नहीं हुई और अपना खाना बनाती रही और बच्चा चिल्लाता रहा, बच्चा काफी देर तक झुठ मूठ चिल्लाता रहा पर माँ उठकर नहीं गई।
फिर वह अपने आप हाथ पैर झाड़ते हुए आया और बोला – माँ, उस दिन मैं गिरा था तो तुम दौड़ कर चली आयी थी और आज मैं कितना रोया फिर भी तुम क्यों नहीं आयी?
माँ कहने लगी की बेटा ! वह दर्द नहीं था. अगर वह दर्द होता तो मैं सेकंड भी चौके मैं नहीं बैठ सकती थी, आज तो तुम्हारा बनावटी दर्द था.
वास्तव में इसमें कोई शक नहीं है कि जिनको वाकई सही में दर्द होता है उनके लिए माँ और परमात्मा हमेशा तैयार खड़े रहते है. अगर तुममें बनावटी दर्द है तो तुम्हारे साथ न माँ है न ही परमात्मा।
अपने असली दर्द यानि समस्या को पहचानो, फिर तब तक चीखों, चिल्लाओ, पैर पटको यानि समाधान खोजने में लग जाओ, जब तक ईश्वर आपकी आवाज सुन कर मददगार न भेज दे।