झाँसी जिस गणेश मन्दिर में महारानी लक्ष्मीबाई और झाँसी नरेश महाराजा टीटीगंगाधराव का विवाह हुआ था, उसे पर्यटन के नक्शे पर लाने की तैयारी की जा रही है। महाराष्ट्रीयन समाज के गणेश मन्दिर को मैरिज डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने की योजना है। इसके लिए मन्दिर कमिटि ने प्रयास तेज कर दिए हैं।
महारानी लक्ष्मीबाई के ससुर एवं महाराजा गंगाधरराव के पिता शिवराम भाऊ ने पानी वाली ‘धर्मशाला के पास वर्ष 1796 से 1814 के बीच गणेश मन्दिर का निर्माण कराया था। मन्दिर की वास्तुकला अद्वितीय है। मन्दिर में एक 18 फीट चौड़ा, 54 फीट लम्बा एवं 35 फीट ऊँचा मुख्य मण्डप है, जहाँ महाराजा गंगाधरराव का बिठूर की मनु से विवाह हुआ था। यहीं से मनु झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई बनी थीं। मन्दिर के प्रथम तल पर 52 झरोखे हैं, जहाँ से मुख्य मण्डप में होने वाले कार्यक्रमों को आसानी से देखा जा सकता है। मन्दिर में सफेद संगमरमर की भगवान गणेश की रिद्धि-सिद्धि के साथ प्रतिमा विराजमान है। मन्दिर का संचालन महाराष्ट्र गणेश मन्दिर कमिटि द्वारा किया जाता है, जिसे वर्ष 1917 में रघुनाथ विनायक घुलेकर ने पंजीकृत कराया था। मन्दिर सार्वजनिक है। यह किसी व्यक्ति, पुजारी या परिवार की निजी सम्पत्ति नहीं है। यहाँ की सम्पूर्ण व्यवस्था, पूजा, आरती, प्रसाद, महा प्रसाद, अभिषेक आदि की देखरेख कमिटि द्वारा ही की ज्यात है। इसी मन्दिर को अब तैयारी की जा रही है, ताकि लोग यहाँ शादी कर सकें और मन्दिर को पर्यटन स्थल के रूप में ख्याति मिल सके।
इनका कहना है
कमिटि द्वारा वर्ष 2016 से प्रतिवर्ष यहाँ महाराजा एवं महारानी लक्ष्मीबाई के विवाह की वर्षगाँठ मनायी जा रही है। कमिटि चाहती है कि मन्दिर में जहाँ रानी झाँसी की शादी हुई थी, उस स्थान पर डेस्टिनेशन मैरिज करने वाले आयें और विवाह की रस्में अदा करें। जिस तरह नवविवाहित जोड़े पचकुइँया मन्दिर में हाथे लगाने जाते हैं यहाँ भी आयें- गजानन खानवलकर सचिव, महाराष्ट्र गणेश मन्दिर कमिटि🙏🙏