प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारणी तृतीयं चंद्रघंटेति कुष्मांनडेति चतुर्थकम पंचमं स्कन्दमातेती षष्ठम कात्यायनीति च सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः
प्रो बसंत प्रभात जोशी के आलेख से सहारा लेकर अपनी भावना व्यक्त करना चाहता हूं। उन्होंने माँ के निम्न स्वरूप बताऐ: –
नवदुर्गा
शैलपुत्री • ब्रह्मचारिणी • चन्द्रघंटा • कुष्मांडा • स्कंधमाता • कात्यायिनी • कालरात्रि • महागौरी • सिद्धिदात्री मंत्र:॥ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुडायै विच्चे॥
1- शैलपुत्री- सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहला स्वरूप हैं पत्थर मिटटी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को महसूस करना।
2- ब्रह्मचारिणी- जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं।
3- चंद्रघंटा- भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणिति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।
4- कुष्मांडा- अर्थात अंडे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है।
5- स्कन्दमाता- पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।
6- कात्यायनी- इस रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं. यह देवी का छटा स्वरुप है।
7- कालरात्रि- देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है। भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं।
8- महागौरी- दुर्गा मां का आठवां स्वरूप गौर वर्ण है।
9- सिद्धिदात्री: यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।
परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।
अब अपनी बात: एक ओर हम मातृ शक्ति के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करें, उनका सम्मान करें। दूसरी ओर घर में, सरेआम बीच बाज़ार में अथवा जहां भी हमें अवसर प्राप्त हो, उसी शक्ति पर निर्मम अत्याचार और उसका अपमान और चीर हरण करने से न चूकें। इस पर अंकुश लगाने के लिये सरकार को कड़े क़ानूनों का प्रावधान करना पड़े। फिर भी हम बाज़ न आयें।
अब तो हद हो गई, धर्म गुरूओं द्वारा धर्मस्थलों में मातृ शक्ति के शोषण की घटनाऐं जग ज़ाहिर हो रही हैं, यह सभ्य समाज के लिये शर्म से डूब मरने जैसा है।
कहीं विकास की चाह में हमने विश्वास, आस्था और श्रृध्दा को नज़र अन्दाज़ तो नहीं कर दिया? जबकि यह एक दूसरे के पूरक हैं।
क्या हमारे संस्कारों में कोई कमी है? अथवा हमारे दोहरे मापदण्ड हैं? इस पर गम्भीरता से विचार कर स्वंय कोई हल निकालें तभी नव रात्रि पर्व मनाना सार्थक होगा। अन्यथा यह एक ढोंग के अतिरिक्त कुछ नहीं!
मां के सभी रूपों को सादर नमन। मां तुझे सलाम!
एक प्रार्थना-मां, हम अच्छे संस्कार दे और हम पर अपनी कृपा दृष्टि हमेशा बनाये रक्खे-आमीन.
सभी देशवासियों को नव रात्रि की हार्दिक शुभ कामनायें.
(सैय्यद शहनशाह हैदर आब्दी)
समाजवादी चिंतक
कैम्प: नॅशनल ऐल्योमिनियम कोर्पोरेशन लिमिटेड – दामनजोड़ी, उड़ीसा।