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मायावती के सियासी पत्ते से ‘हिल गए’ अखिलेश यादव?

नई दिल्ली 21 सितंबर वैसे तो राजनीति में कभी भी कुछ भी संभव होता है. राजनीति वक्त की उस पटरी पर चलती है जो सामने दिखाई पड़े, लेकिन इन दोनों सियासी गलियारे में बसपा सुप्रीमो मायावती जो पते हिला रही हैं उसकी हवा की आहट से दिग्गज नेता भी हिलते नजर आ रहे हैं ।
एक तरफ जहां मायावती के अकेले रूख से कांग्रेस को करारा झटका लगा है, तो वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी कहीं ना कहीं किनारे पर नजर आ रहे हैं।
मायावती का हाल ही में ही यह बयान कि वो ना किसी की बुआ है और ना कोई उनका भतीजा । इस बयान के बाद अखिलेश यादव को 2019 में बसपा के साथ गठबंधन की संभावनाओं में कई पेच नजर आ रहे हैं लगे हैं।
वैसे यह सच है कि इन दोनों अखिलेश यादव के सामने कई मुश्किल है। एक तरफ जहां मायावती उन्हें कदम कदम पर झटके दे रहे हैं, तो वहीं हाल में ही सपा से अलग होकर शेखपुर मोर्चा बनाने वाले शिवपाल यादव भी बड़ी चुनौती बनते नजर आ रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो मायावती यह बात अच्छी तरह समझती हैं कि राजनीति में पत्ते तभी खोलना चाहिए जब सामने वालों के पास कोई पत्ता न रह जाए यही वजह है कि सपा से गठबंधन को लेकर उन्होंने पुख्ता मुहर अब तक नहीं लगाई।
मायावती यह मानकर चल रही है कि अखिलेश यादव से अलग हुए शिवपाल यादव आने वाले समय में सपा के लिए कड़ी चुनौती होंगे। अखिलेश यादव से नाराज कई नेता शिवपाल यादव का दामन थाम लेंगे। ऐसे में यदि वह अखिलेश से गठबंधन करती हैं तो बसपा का वोट बैंक गठबंधन को जा सकता है, लेकिन गठबंधन का बोर्ड बसपा को मिले इसकी उन्हें कोई गारंटी नजर नहीं आती है।
इस बात का तर्क भाजपा खेमा यह कहते हुए देता है कि कांग्रेश और सपा ने जब मिलकर चुनाव लड़ा था तब क्या हाल हुआ था।
इन दोनों यूपी में 2019 के चुनाव की तैयारियों में जुटी भाजपा की ओर से पुरजोर कोशिश की जा रही है कि वह किसी तरह अखिलेश यादव की विकासशील नेता की छवि को डैमेज करें इसके लिए प्रदेश में विकास के कई सारे कार्य धरातल पर उतारने के प्रयास किए जा रहे हैं।
यह भी सच है कि आने वाले दिनों में शिवपाल यादव संगठनात्मक रूप से अखिलेश के सामने कड़ी चुनौती पेश करेंगे। शिवपाल की पूरे प्रदेश में संगठन स्तर पर जो पकड़ है उसका लाभ यदि वो ले गए, तो इसका सीधा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा!
यहां यह देखना दिलचस्प होगा कि मुश्किल वक्त में मायावती का अखिलेश यादव से किनारा करना, भाजपा और शिवपाल के प्रहार को अखिलेश यादव अपनी राजनीति कुशलता से झेल पाते हैं या नहीं?

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