नई दिल्ली 4 अप्रैलः कहते है कि राजनीति मे फंसा मुददा लोगो को गहराई तक नहीं जाने देता है। यही हाल एससीएसटी एक्ट को लेकर हो रहा है। जिस कानून को लेकर बीते दो दिन मे देश भर में दलित संगठनो ने बंद का आहवान किया और उस दौरान हिंसा हुयी, उसमे कई लोगो की जान चली गयी। क्या आप जानते है कि उस कानून मंे सुप्रीम कोर्ट से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती संशोधन कर चुकी हैं।
उप्र मे मायावती का संशोधित कानून आज भी लागू है। मजेदार बात यह है कि इसको लेकर पहले कोई हंगामा नहीं हुआ, आखिर क्यो?
हिंसा के दो दिन बाद ही 2007 में मायावती सरकार का वह सरकारी आदेश एक बार फिर सामने आ गया, जिसमें एससी-एसटी एक्ट को न सिर्फ संशोधित किया गया, बल्कि उसमें एक धारा 182 लगाकर यह आदेश पारित किया गया कि अगर कोई इसका दुरुपयोग करेगा, तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई होगी. इतना ही नहीं, एससी-एसटी एक्ट में गिरफ्तारी तभी होगी, जब सीओ स्तर का कोई अधिकारी अपनी विवेचना में मामले को सही पाएगा
मायावती के शासन में 20 मई 2007 को तत्कालीन मुख्य सचिव प्रशांत कुमार ने एक सरकारी आदेश निकालकर अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम में कुछ बड़े बदलाव किए थे, जिसके तहत हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में इस एक्ट को लगाने से पहले एसपी या एसएसपी को अपनी विवेचना करनी होती है.
मायावती के इस आदेश की कॉपी के सामने आने के बाद से बीजेपी बीएसपी सुप्रीमो मायावती पर हमलावर हो गई है और खुलकर मायावती पर यह आरोप लगा रही है कि दलितों और आदिवासियों के लिए बनाए गए इस एक्ट को सबसे पहले और सबसे ज्यादा कमजोर खुद मायावती ने किया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि हर बात का बिंदुवार जवाब देने वाली मायावती अपने ही इस सरकारी आदेश के सामने आने के बाद क्या तर्क सामने रखती है?