मोदी ने 32 पत्रों का जवाब नहीं दिया : अन्ना

संदीप पौराणिक
खजुराहो (मध्य प्रदेश), 4 दिसंबर,| सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अबतक कुल 32 पत्र लिखे हैं, जिनमें 10 लोकपाल कानून और शेष किसानों व जमीन संबंधी समस्याओं को लेकर हैं। लेकिन इनमें से किसी भी पत्र का जवाब उन्हें नहीं मिला है। अन्ना यहां शनिवार से शुरू हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय जल सम्मेलन में हिस्सा लेने आए थे।

अन्ना हजारे ने इस मौके पर आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा, “लगातार पत्र लिखने के बावजूद प्रधानमंत्री की ओर से जवाब नहीं आया। उसके बाद एक पत्र में लिखना पड़ा कि आपके पास काम ज्यादा है, इसलिए समय नहीं मिलता पत्र लिखने के लिए, या फिर आपके दिल में इगो है, इसलिए जवाब नहीं दे रहे। उसी के बाद 23 मार्च से अनिश्चितकालीन आंदोलन का तय कर लिया। यह भगतसिंह और राजगुरु का शहीद दिवस है।”

अन्ना ने एक सवाल के जवाब में कहा, “कांग्रेस सरकार को कुल 70 पत्र लिखे थे और 2011 में रामलीला मैदान में आंदोलन करने पर सरकार ने लोकपाल विधेयक पारित कर दिया था। मगर उस कानून में कमी रह गई थी। वर्तमान सरकार ने तो उसे और कमजोर कर दिया है। इसीलिए 23 मार्च से आंदोलन शुरू कर रहे हैं। यह आंदोलन तबतक चलेगा जबतक लोकपाल कानून को मजबूत नहीं किया जाता और किसानों का कर्ज माफ नहीं हो जाता। आंदोलन पूरी तरह अहिंसक होगा, सरकार जेल भेंजेगी तो जेल आना-जाना लगा रहेगा।”

अन्ना ने कहा, “कांग्रेस और भाजपा में कोई अंतर नहीं है। दोनों को अपने दल को मजबूत करने की ज्यादा चिंता है। उन्हें देश और समाज की स्थिति से कोई लेना-देना नहीं है।”

उन्होंने आगे कहा, “मनमोहन सिंह बोलते नहीं थे और उन्होंने लोकपाल-लोकायुक्त कानून को कमजोर किया। अब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोकपाल को कमजोर करने का काम किया है। मनमोहन सिंह के समय कानून बन गया था, उसके बाद नरेंद्र मोदी ने संसद में 27 जुलाई, 2016 को एक संशोधन विधेयक के जरिए यह तय किया गया कि जितने भी अफसर हैं, उनकी पत्नी, बेटे, बेटी आदि को हर वर्ष अपनी संपत्ति का ब्योरा नहीं देना होगा। जबकि कानून में यह ब्योरा देना आवश्यक था।”

अन्ना ने मौजूदा सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करते हुए कहा, “लोकसभा में एक दिन में संशोधन विधेयक बिना चर्चा के पारित हो गया, फिर उसे राज्यसभा में 28 जुलाई को पेश किया गया। उसके बाद 29 जुलाई को उसे राष्ट्रपति के पास भेजा गया, जहां से हस्ताक्षर हो गया। जो कानून पांच साल में नहीं बन पाया, उसे तीन दिन में कमजोर कर दिया गया।”

अन्ना ने आरोप लगाया, “मनमोहन सिंह और मोदी, दोनों के दिल में देश सेवा और समाज हित की बात नहीं है। वे उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे, लेकिन किसानों की चिंता उन्हें नहीं है।”

सामाजिक कार्यकर्ता ने आगे कहा, “उद्योग में जो सामान तैयार होता है, लागत मूल्य देखे बिना ही दाम की पर्ची चिपका दी जाती है। लेकिन किसानों का जितना खर्च होता है उतना भी दाम नहीं मिलता। ऊपर से किसान से कर्ज पर चक्रवृद्घि ब्याज वसूला जाता है। कई बार तो ब्याज की दर 24 प्रतिशत तक पहुंच जाती है। वर्ष 1950 का कानून है कि किसानों पर चक्रवृद्घि ब्याज नहीं लगा सकते, मगर लग रहा है।”

अन्ना ने बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि किसानों से जो ब्याज साहूकार नहीं ले सकते, वह ब्याज बैंक वसूल रहे हैं। बैंक नियमन अधिनियम का पालन नहीं हो रहा है, इसे भारतीय रिजर्व बैंक को देखना चाहिए।

अन्ना ने कहा कि 60 वर्ष की आयु पार कर चुके किसानों को पांच हजार रुपये मासिक पेंशन दिया जाना चाहिए।

उन्होंने उद्योगपतियों का कर्ज माफ किए जाने पर सवाल उठाया और कहा, “उद्योगपतियों का हजारों करोड़ रुपये कर्ज माफ कर दिया गया है। मगर किसानों का मुश्किल से 60-70 हजार करोड़ रुपये कर्ज, क्या सरकार माफ नहीं कर सकती?”

अन्ना का मानना है, “सरकारें तब तक नहीं सुनतीं, जबतक उन्हें यह डर नहीं लगने लगे कि विरोध के चलते वे गिर सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि एकजुट होकर आंदोलन किया जाए। जब तक ‘नाक नहीं दबाई जाएगी, मुंह नहीं खुलेगा’।”

 

 

 

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