झांसी । बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा के प्रतिनिधि मंडल भानू सहाय एवं राजेंद्र शर्मा ने जिला अधिकारी से भेट कर रामचंद राव की समाधि स्थाल के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि 1803 में मराठों और अंग्रेजो में बेसन की संधि हुई जिसमें मराठों ने बुंदेलखंड में अपना हिस्सा अंग्रेजो में हस्तांतरित कर दिया।
उस समय झाँसी के सूबेदार शिव राव भाऊ थे। एसी परिस्थिति में शिव राव को सत्ता के अतिरिक्त ईस्ट इंडिया कंपनी का भी सत्ता की सर्वोच्चता को स्वीकार करना पड़ा। 1815 मे इनकी मृत्यु हुई तथा उनका उत्तराधिकारी उनका पौत्र रामचंद्र राव हुए जिसने बदली हुई परिस्थितियों में अंग्रेजो से एक संधि की जिसके अनुसार रामचंद्र राव के उत्तराधिकारियों को झाँसी का सूबेदार वंशानुगत आधर पर नियुक्त किए जाने का अंग्रेजो ने वचन दिया।
*1835 में नि:सन्तान रामचंद्र राव की मृत्यु हो गई। अतः उनका उत्तराधिकारी उनका चाचा रघुनाथ राव भी निःसंतान थे। 1838 में उनकी मृत्यु हो गई अतः उनके छोटे भाई गंगाधर राव को गद्दी पर बैठाया गया*।
महारानी लक्ष्मीबाई जी ने अपने जेठ रामचंद्र राव की समाधि का निर्माण पुरानी तहसील के पास करवाया था।
महारानी के जेठ रामचंद्र राव की समाधि को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग झाँसी के नियंत्रण में है परंतु संबंधित विभाग द्वारा समाधि की घोर उपेक्षा की जा रही हैं।
समाधि स्थल के चारो ओर बनी बाउंड्रीवाल गिरने के कगार पर हैं। समाधि स्थल के ऊपर लगी टीन की चादर जगह-जगह से टूटी हुई हैं, चारो ओर बने गुंबद टूट चुके हैं।
महारानी लक्ष्मीबाई के जेठ एवं झाँसी के महाराज की समाधि स्थल की दुर्दशा के लिए संबंधित अधिकारी के खिलाफ कार्यवाही की जाए तथा समाधि स्थल का पुनर्निर्माण करवाया जाए।
*जिला अधिकारी ने रामचंद्र राव की समाधि स्थाल का जीर्णोद्धार संबंधित विभाग से शीघ्र करवाये जाने का आश्वासन दिया*।
अत्यंत दुख का विषय हैं कि सांसद, विधायक, राजनैतिक दलों के पदाधिकारी, एवं सामाजिक संस्थाएं महारानी लक्ष्मीबाई का नाम ले-ले के महारानी भक्ति में सबसे आगे दिखना चाहते हैं पर जब किले की पहाड़ी, लक्ष्मीताल, रामचंद्र राव की समाधि स्थल आदि की बात आती है तो मौन धारण कर लेते है।