नई दिल्ली 21 फरवरीः समाजवादी पार्टी के अंदर पिछले दिनो पारिवारिक कलह मे फजीहत का शिकार हुये मानकर चल रहे शिवपाल सिंह यादव को कांग्रेस का साथ पसंद आ रहा है। खबर है कि प्रदेश अध्यक्ष पद की डिमांड के साथ ज्वाइन करने का आफर दिया गया है। आजतक की खबर की माने, तो यह आफर स्वीकार होने पर चाचा यानि शिवपाल जल्द ही कांग्रेसी हो सकते हैं!
2019 लोकसभा चुनाव की लड़ाई के लिए कांग्रेस अच्छी तरह जानती है कि उत्तर प्रदेश में मजबूत होना कितना जरूरी है. ऐसे में कांग्रेस अपने खांटी नेताओं के साथ बाहर के कद्दावर नेताओं को भी साथ मिलाकर दांव खेलना चाहती है. मायावती के कभी सिपहसालार रह चुके नसीमुद्दीन सिद्धीकी का गुरुवार को कांग्रेस में शामिल होना करीब-करीब तय हो चुका है. कांग्रेस ने नसीमुद्दीन को बुंदेलखंड इलाके में पार्टी को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपने का मन बनाया है.
मुलायम के मास्टर रणनीतिकार थे शिवपाल
यूपी में और भी ऐसे कई नेता हैं जो अपने लिए नए सियासी ठिकाने की तलाश में हैं. ऐसे ही एक नेता हैं मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव. उनकी अपने भतीजे और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से नाराजगी किसी से छुपी नहीं है. मुलायम सिंह के सर्वेसर्वा रहते हुए शिवपाल को ही समाजवादी पार्टी का मास्टर रणनीतिकार माना जाता था. बताया जा रहा है कि शिवपाल पिछले कई दिनों से कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं.
ताकत दिखाने के लिए शिवपाल मांग रहे यूपी अध्यक्ष पद
सूत्रों की मानें तो शुरुआत में ही शिवपाल ने कांग्रेस से प्रदेश अध्यक्ष पद की इच्छा जताई, जिस पर कांग्रेस आलाकमान ने अभी तक सहमति नहीं दी है. हालाँकि, बातचीत इसके बाद भी जारी है. कांग्रेस चाहती है कि, शिवपाल कानपुर, मैनपुरी, इटावा और आस पास के जिलों में पार्टी को मजबूत करने की ज़िम्मेदारी उठाएं. वहीं शिवपाल चाहते हैं कि, उनको प्रदेश में पूरी तरह ज़िम्मेदारी मिले, जिससे वो अपनी ताकत दिखा सकें. बताया जा रहा है कि इस मुद्दे पर शिवपाल की कांग्रेस नेताओं के साथ बातचीत जारी है.
भारी न पड़ जाएं शिवपाल से दोस्ती
कांग्रेस बाहरी नेताओं को साथ लेने पर इस मुद्दे पर भी गौर कर रही है कि 2019 लोकसभा चुनाव में अगर दूसरी पार्टियों से हाथ मिलाने की नौबत आई तो कहीं ज्यादा दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े. सूत्रों के मुताबिक, नसीमुद्दीन सिद्दीकी को लेकर तो ज़्यादा दुविधा नहीं है. ज्यादा परेशानी शिवपाल को लेकर है, कहीं उन्हें साथ लेने से अखिलेश नाराज ना हो जाएं और समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव में तालमेल की संभावना पर पूरी तरह विराम ना लग जाए.