झांसीः जिद के आगे जीत वाली झांसी कैसी होगी?

झांसीः कहते है कि तूफानी करने वाले अक्सर जिद के साये में लिपटे रहते हैं। उनका जोश, जुनून और जज्बा कुछ कर दिखाने में  कामयाब होता है। इस समय निकाय चुनाव में  झांसी सभी के लिये खास है। राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर पिछड़ेपन का तमगा लिये बुन्देली माटी के लिये सबसे अच्छी जिद कौन करेगा और किसकी जिद माटी की सूरत बदलेगी। यह सवाल हवा में  तैर रहा है।

झूंसी से झांसी बनने का सफर तय करने वाली झांसी पूरे विश्व में  पहचानी जाती है। बुन्देली माटी के बारे में  कहा जाता है कि यह कलम, कला और कृपाण की धरती है। यानि जिन शब्दो में  पूरे दुनिया को बदलने की ताकत है, उन शब्दो  के जादूगरों और वीर योद्वाओ  की धरती पिछले कई दशलो  से अपनी सूरत बदलने की बाट जोह रही है। पलायन, सिंचाई के लिये पानी, किसान को बीज, बेरोजगारों को रोजगार, चमचमाती सड़कें, अंडरग्राउंड पार्किंग, 24 घंटे बिजली, स्वास्थ्य सेवाएं, यातायात, व्यापार में बदलाव जैसे मुददे आज तक सफलता के पायदान नहीं चढ़ सके।

वैसे तो, विकास का जिम्मा जनप्रतिनिधियों  के कंधा पर होता है। जनप्रतिनिधि चाहे विधानसभा का हो या फिर लोकसभा का। अब पावर में  मेयर पद भी आ गया है। यदि हम स्व. सुशीला नैयर के जमाने की परत खोलकर देखे, तो शायद विकास का पहला अक्षर उस दौर मंे इतिहास के पन्नो में  लिखा गया।

वक्त के साथ राजनैतिक, सामाजिक हालातों  ने करवट ली, तो सब कुछ व्यवसाय कहे या स्वार्थ की चादर में समाने का दौर में जा खड़ा हुआ। झाँसी को सदियों पीछे छोड़ कर आगे बढ़ते माननीय अपने लिये जीत-हार का खेल खेलते रहे। झाँसी सिर्फ तमाशा देखती रही।

आज एक बार फिर से नगर की रीढ़ कही जाने वाली नगर निगम में  महापौर यानि नगर का प्रथम नागरिक चुनने का मौका है। महापौर के साथ मेम्बर यानि सभासद भी चुने जाएंगे।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया से होने वाले इस चयन में  अब बात केवल चेहरे और दल की नहीं हर गयी है। मुददा यह आ गया है कि कौन झांसी की सूरत बदलने का माददा और विचार रखता है। वैसे माददा और विचार को लेकर सभी अपने-अपने दावे कर रहे हैं और मतदान तक करेगे।

दावेदारो  के दावे जानने से पहले हम यह समझ लेते है कि झांसी के विकास में  क्या कर सकते है।

अब तक महानगर को बी-2 का दर्जा नहीं मिला था। इसके लिये स्व. मिथलेश कुमार दुबे ने जिद की। वो सफल रहे, लेकिन असमय चले गये। दूसरी जिद महानगर को स्मार्ट सिटी बनाने की हुयी। इसमें  भी जीत मिली। यह जीत आने से पहले महापौर किरन वर्मा का कार्यकाल समाप्ति की दिशा में बढ़ गया। यानि अब नये को मौका मिलेगा कि वो स्मार्ट सिटी में झांसी की कैसी सूरत बनाता है।

जाहिर है कि स्मार्ट सिटी को लेकर सोच बुलंद होनी चाहिये। इस मामले में  मेयर प्रत्याशियों  के अपने-अपने दावे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य को अपने कार्यकाल में  कराये गये विकास कार्यों की याद आ जाती। वो कृषि विश्वविद्यालय, मेडिकल कालेज को एम्स जैसी सुविधा, कोच फैक्टी, इंटरसिटी का झाँसी  आगमन, पानी,बिजली की समस्या का समाधान करने का दावा करते हैं। आगामी प्लान में  नगर में  अंडरगाउंड पार्किंग, निगम की भूमि पर कब्जों को हटाना, गली मोहल्लो में  स्वास्थ्य केन्द्र, हाउस टैक्स की गडबड़ी पर रोक, सड़कों को नया रूप देना, चैराहांे, पार्कों को विश्वस्तरीय बनाने से लेकर महिलाओ, युवाओ  और आम आदमी को झांसी एक शानदार शहर के रूप में  देना चाहते हैं।

बसपा के डमडम का इरादा भी कुछ ऐसा ही है, लेकिन वो निगम की कार्यशैली के अध्ययन की बात करते हैं। डमडम अभी विकास को लेकर सही विजन तैयार नहीं कर पाये हैं, लेकिन दावा है कि बदलाव अच्छा होगा।

सपा के राहुल सक्सेना, तो झांसी की तस्वीर बदलने के लिये पूर्व की सपा सरकार के विकास कार्यों का हवाला देते हुये जनता से मौका मांग रहे हैं। इन्हें अखिलेश की तरह झांसी को बदलने की जिद है।

भाजपा सत्ताधारी दल है। विधायक, सांसद से लेकर वर्तमान महापौर तक पार्टी का है। ऐसे में  दल से अपेक्षाएं ज्यादा हो जाती है। पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर अधिकृत रूप से कोई नाम सामने नहीं आया है, लेकिन पार्टी की विचारधार ही प्रत्याशी की विचारधारा होती है। इसलिये बीजेपी सर्वांगीण विकास को मुददा बनाकर मैदान में  आएगी। यही उसकी जिद है। इन सबसे इतर निर्दलीय राम कुमार अंक शास्त्री नगर के बेरोजगारो  को रोजगार देने की जिद लेकर मैदान में  हैं

 

सबसे बड़ा धमाका कहे या जिद। भारतीय प्रजाशक्ति पार्टी कर रही है। आरक्षण का विरोध उसका मुख्य हथियार है। विकास के लिये पार्टी ने 20 से अधिक मुददे तय किये हैं। प्रत्याशी श्रीमती नीरजा रावत और पार्टी अध्यक्ष पंकज रावत साफ कहते हैं कि हम बदलाव के लिये पहल कर रहे हैं। वक्त बदलाव का है। झांसी को अब ठगने नहीं दिया जाएगा। पलायन, किसान, बेरोजगार, युवा और पानी, बिजली, सड़क जैसे मसले हमारी प्राथमिकता में  हैं।

कुल मिलाकर दावेदारो  की जिद से तो, बदलावा के संकेत मिलते हैं, लेकिन सवाल यही है कि सही जिद किसकी है। यह जनता तय करेगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *