झांसी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में शनिवार को आयोजित कवि सम्मेलन में युवाओं ने जोरदार तालियां बजाकर रचनाकारों को अपनी ऊर्जा का आभास कराया।
कवि सम्मेलन में रचना विमल ने एक रचना नारी स्वतंत्रता आकाश में उड़ती पतंग सुनाई। उन्होंने मां गंगा की पीड़ा को भी एक रचना से स्वर दिया।
डा अवध किशोर जड़िया ने भी अपनी रचनाओं से युवाओं को झकझोरा है। सजे सजाए फट अक्षत जलते दीपक दोनों नैना रचना भी पेश की।
कवयित्री श्वेता सिंह ने एक रचना -’जमाने जैसे भर से जंग का ऐलान होती है,डगर ये प्रेम की कहां इतनी आसान होती है सुनाई। उन्होंने एक और रचना ‘तपिश गर धूप की हो तो सुहानी शाम हो जाऊं भी सुनाई। एक और मुक्तक मत इ़थर देखिए, मत उधर देखिए भी सुनाई। उन्होंने एक गीत ‘क्षण भर में तुम कर देते महफ़िल में वीरान, जब कहते हो अब चलते हैं जाती है मेरी जान- भी सुनाया। उन्होंने एक और रचना लाख हमको डराओ डरेंगे नहीं रचना सुनाई।
युवा कवि नीलोत्पल मृणाल ने झांसी की धरती को प्रणाम करते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने एक रचना ऐ कवि कविता नहीं अपने समय की चिंता लिखो सुनाई।
उन्होंने एक और गीत:”कहां गया हाय मेरा दिन वो सलोना रे” भी सुनाया। उन्होंने एक और रचना थोड़ा सा नदी का पानी मुट्ठी भर रेत रख लो भी सुनाई। उन्होंने अपना गीत इलाहाबाद के लड़कों तुमसे ये मौका न छूटे भी सुनाया।
कवि अर्जुन सिंह चांद ने भी अपनी कुछ रचनाओं को पेश किया। उन्होंने दुनिया को एक नया कायदा दीजिए रचना पेश की। उन्होंने एक और गीत क्या ही महिमा कहें हम प्रभु राम की भी पेश की।ं
प्रख्यात डा विष्णु सक्सेना ने मां सरस्वती और मैथिली शरण गुप्त को प्रणाम कर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि जीवन भर मोहब्बत के लिए ही लिखा। उन्होंने एक रचना दिले बीमार सही वो दवाएं दे दे सुनाई। एक और रचना ऐ मेरे रब मैं सांस में महक जाऊं रचना भी सुनाई। उनकी एक और रचना तू हवा है तो कर ले अपने हवाले मुझको ने भी युवाओं को अजब ऊर्जा से भर दिया।
उन्होंने एक रचना प्यास बुझ जाए तो शबनम खरीद सकता हूं,ज़ख्म मिल जाए तो मरहम खरीद सकता हूं, ये मानता हूं मैं दौलत नहीं कमा पाया, मगर मैं तुम्हारा हरेक गम खरीद सकता हूं रचना सुनाकर भी तालियां बटोरीं।
डा सक्सेना ने एक और रचना तू जो ख्वाबों में भी आए तो मेला कर दे भी सुनाया। उन्होंने एक गीत तन और मन हैं पास बहुत सुनाकर भी युवाओं के मन को झकझोरा।
उन्होंने रचनाकारों की व्यथा को भी सुर दिया। उनकी रचना अब लगता है जाग जागकर,
क्यों सपनों के बोझ उठाए,मुस्कानों को बेच बेचकर,आंसू अपने घर ले आए, प्रेम तो अब व्यापार बन गया, तड़पन उसकी मजबूरी है।
उन्होंने एक और गीत चांदनी रात में,रंग ले हाथ में जिंदगी को नया मोड़ दें,,, सुनाया। उन्होंने एक और रचना थाल पूजा का लेकर चले आइए भी सुनाई।
उन्होंने एक और रचना रेत पर नाम पर लिखने से क्या फायदा,एक आई लहर तो कुछ बचेगा नहीं सुनाकर युवाओं को झुमाया।
अंत में कला संकाय अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। इस कार्यक्रम में सभी कवियों को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया।