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झाँसी-स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर विशेष

स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि पर विशेष।

महान धर्मनिरपेक्ष देश के सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखने वाले महान सपूत स्वामी विवेकानन्द को 116 वीं पुण्यतिथि पर सादर श्रृध्दांजलि।

स्वामी विवेकानन्द( बांग्ला: স্বামী বিবেকানন্দ) का जन्म: १२ जनवरी,१८६३ को कोलकाता में और मृत्यु ४ जुलाई,१९०२ को ३९ वर्ष की अल्पायु में बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज (अब बेलूर, पश्चिम बंगाल में) हुई।

वे वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। वे एक शानदार धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व के स्वामी थे।

उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। जहां जाने का विरोध हिन्दुस्तान के कुछ सनातन धर्म के स्वयं भू ठेकेदारों द्वारा किया गया था। आज वही लोग उन्हें सिर्फ हिन्दूओं का आदर्श बताकर उनके महान व्यक्तित्व को एक धर्म तक सीमित कर रहे हैं।

भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा।

उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

तस्वीर में स्वामी विवेकानन्द ने बाँग्ला एवं अंग्रेज़ी भाषा में लिखा है: “एक असीमित, पवित्र, शुद्ध सोच एवं गुणों से परिपूर्ण उस परमात्मा को मैं नतमस्तक हूँ।” इसी तस्वीर में दूसरी ओर स्वामी विवेकानन्द के हस्ताक्षर हैं।

गुरु/शिक्षक श्री रामकृष्ण परमहंस दर्शन आधुनिक वेदांत, राज योग साहित्यिक कार्यराज योग (पुस्तक) कथन “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये” में दृढ़ इच्छाशक्ति का पता चलता है।

स्वामी विवेकानंद हर तरह की विविधता के समर्थक थे। बहुलता पर आधारित राष्ट्रवाद उनका लक्ष्य था।उनका कहना था कि-

“हल पकङे हुए किसानो की कुटिया से नए भारत का उदय हो…मोची मछुआरों और भंगी के दिल से नए भारत का उदय हो… पंसारी की दुकान से नए भारत का जन्म हो… बगीचों और जंगलो से उसे निकलने दो… पर्वतो और पहाङों से उसे निकलने दो…”

विवेकानंद जी का मानना था कि, नैसर्गिक और स्वस्थ राष्ट्रवाद का विकास तभी होगा, जब न सिर्फ धर्मों के बीच, बल्की पूरब और पश्चिम की संस्कृतियों के बीच बराबरी का आदान-प्रदान हो।

1893, में शिकागो की धर्मसभा में दिया गया विवेकानंद जी का भाषण उनकी विश्व बंधुत्व की सोच को बिलकुल स्पष्ट करता है।

उनकी राष्ट्रीयता भारतीय/हिन्दुस्तानी थी

स्वामी विवेकानन्द कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का पहले हाथ ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच की। विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया , सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है और इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

काश छद्म राष्ट्रवादियों और छद्म हिन्दुत्वादियों ने स्वामी विवेकानंद जी के व्यक्तित्व और दर्शन को समझा होता, तो आज वो नफरत की सियासत न करते।

आज उनकी पुण्यतिथि है। महान देश के सर्व धर्म – समभाव में विश्वास रखने वाले महान सपूत स्वामी विवेकानंद जी को दिल की गहराइयों से लाखों सलाम।

सैयद शहनशाह हैदर आब्दी
समाजवादी चिंतक – झांसी।

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