जय जय श्रीराम जय हनुमान
*आवत एहि सर अति कठिनाई*—जी हाँ परमार्थ-पथ अतिशय कुश-कंटक है, कदम-कदम पर विभिन्न प्रकार के संकटासुर मुँह फैलाए खड़े रहते हैं, संकटों के विशाल पर्वत, सरिताएँ और नालों को पार करना पड़ता है, कोई भौतिक निधि/बल काम नहीं आता है, हाँ यदि करों में ईश्वरीय विवेक का डंडा है तो कुछ भी असम्भव नहीं है…