संदीप पौराणिक
छतरपुर (मध्य प्रदेश), 19 मई | छतरपुर जिले से लगभग 70 किलोमीटर दूर घुवारा की ग्वाल खेरा बस्ती में रात 12 बजे हाथ में डिब्बे लिए हैंडपंप के गड्ढे में पानी जमा होने का इंतजार करते बुजुर्ग बाबूलाल जैन पानी भरकर घर जाने की बाट देख रहे हैं। लेकिन आधे घंटे से पहले उनकी यह इच्छा पूरी होना मुश्किल मालूम पड़ता है।
बुंदेलखंड की हर बस्ती का हाल लगभग यही है। मध्य प्रदेश सरकार जहां इस इलाके के 54,780 हैंडपंपों में से 49,792 हैंडपंपों में पानी देने का दावा कर रही है वहीं यह तस्वीर सरकार की सच पर पर्दा डालने की कोशिश दिखाई दे रही है।
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छह जिलों में बीते तीन वर्षो में औसत से कम बारिश हुई है, तालाब सूखकर मैदान में बदल गए हैं, कुओं में पानी नहीं है और हैंडपंपों ने पानी देने बंद कर दिए हैं। ओरछा से लेकर टीकमगढ़ तक के लगभग 90 किलोमीटर के रास्ते में कोई भी ऐसा गांव नहीं है, जहां लोग दिन हो या रात पानी की जद्दोजहद से जूझते नजर नहीं हैं। वहीं टीकमगढ़ से 60 किलोमीटर घुवारा तक भी लगभग यही हाल दिखाई देता है।
घुवारा के स्थानीय निवासियों का कहना है कि ऐसे हालात कई वषों से बने हैं, रात-रात भर हैंडपंप पर पानी का इंतजार करना होता है कि बारी कब आएगी। जब बारी आती है तो एक साथ आठ से 10 डिब्बे भर लेते हैं। एक व्यक्ति के भरने के बाद लगभग आधा घंटा इंतजार करना होता है। एक हैंडपंप से दो सौ से ज्यादा परिवारों का काम चल रहा है।
उन्होंने कहा, “पानी की समस्या है, कस्बे के कुछ हिस्सों में नलजल योजना का पानी पहुंच रहा है, वहीं बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां पाइपलाइन तो है, मगर पानी नहीं पहुंचता। ऐसे में करें तो क्या करें। एक मात्र सहारा हैंडपंप है, उसी से काम चल रहा है, भले ही घंटों इंतजार करना होता है।”
ग्रामीण इलाके के लोगों में अपने-अपने जनप्रतिनिधि को लेकर खासी नाराजगी है, घुवारा के एक किसान ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि आज हाल यह है कि वे भैंस के खूंटे से कुत्ते को बांधे हैं, अर्थ है कि भैंस को खिलाने के लिए चारा और पिलाने के लिए पानी तक नहीं है। जहां तक बात नेता और विधायक की है तो सिर्फ चुनाव के समय ही उनके दर्शन होते हैं। किसान इतना डरा हुआ था कि अखबार में नाम छाप दिया तो लोग उसके पीछे पड़ जाएंगे।
छतरपुर के जिलाधिकारी रमेश भंडारी ने आईएएनएस को बताया, “यह सही है कि जिले में पेयजल संकट है, मगर सभी को पानी उपलब्ध हो रहा है। जिस बस्ती में एक हैंडपंप चालू है तो वह वहां के लोगों की जरूरत को पूरा कर रहा है। जहां पूरी बस्ती में हैंडपंप या अन्य जल स्त्रोत से पानी नहीं मिल रहा, वहां टैंकर की व्यवस्था की गई है।”
भंडारी ने आगे बताया कि जिन हैंडपंपों ने पानी देना बंद कर दिया है, उनमें अतिरिक्त पाइप डाले गए हैं, इसलिए अभी पानी की समस्या काफी हद तक नियंत्रण में है, आगामी दिनों में यह संकट और बढ़ सकता है, लिहाजा प्रशासन अपनी ओर से हर संभव तैयारी कर रहा है ताकि लोगों को ज्यादा दिक्कत न हो।
घुवारा क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता उत्तम यादव का कहना है कि सरकार के आंकड़े चाहे जो हों मगर हकीकत यह है कि गिनती के हैंडपंप ही पानी दे रहे हैं और वह भी आधा से एक घंटे के अंतर से आठ से 10 डिब्बे पानी उगलते हैं। ऐसे में 200 से 400 परिवारों की बस्ती की जरूरत पूरी नहीं हो पा रही है।
पिछले दिनों बुंदेलखंड जन मंच ने इस इलाके की हकीकत की तस्वीर को लेकर जमीनी रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थे। इस रिपोर्ट को जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने भोपाल में जारी किया था, रिपोर्ट के आंकड़े आंखें खोलने वाले थे। इस रिपोर्ट के सामने आते ही सरकार ने आनन-फानन में इस इलाके की पेयजल समस्या पर पर्दा डालने के लिए ऐसे आंकड़े जारी किए, जिन पर आसानी से भरोसा करना संभव नहीं है।
सर्वे रिपोर्ट और सरकारी आंकड़ों के आधार पर वास्तविकता जानने के लिए आईएएनएस ने जब जमीनी पड़ताल की तो, सरकार के आंकड़ों में कम ही सत्यता नजर आई। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि इस इलाके के 54,780 हैंडपंप में से 49792 हैंडपंप पानी दे रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सिर्फ 10 फीसदी ही हैंडपंप पानी नहीं दे रहे। सरकार के आंकड़ों को सही मान लें तो फिर टैंकर चलाने और कार्ययोजना की जरूरत ही नहीं है, मगर हकीकत जुदा है। वास्तव में मुश्किल से 30 प्रतिशत हैंडपंप पानी दे रहे हैं, वह भी संबंधित इलाकों की जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
गांव के लोग सरकार की आंकड़ेबाजी से अनजान हैं। जब उनसे पूछा गया कि सरकार का दावा है कि हर 100 हैंडपंप में से 88 पानी दे रहे हैं तो उनका एक ही जवाब मिला, “इससे बड़ा झूठ कोई और नहीं हो सकता। उनका दावा है कि मुख्यमंत्री स्वयं आकर ऐसी जगह बताएं जहां 100 में से 88 हैंडपंप पानी दे रहे हैं। वे सिर्फ बोलते हैं, वादे करते हैं, मगर होता कुछ नहीं है।”