झाँसी। अनजुमन-ए-अलविया के तत्वाधान में रसूले खुदा मोहम्मद मुस्तफा के उत्तराधिकारी हज़रत अली की शहादत की याद में एक “मजलिस-ए-अज़ा”मेवाती पुरा झांसी में स्थित‘बाबा के कोठे’ के नाम से प्रसिध्द इमाम बाडा फतेह अली आब्दी मरहूम में आयोजित की गई। बाद मजलिस-ए-अज़ा हज़रत अली के ताबूत की ज़ियारत कराई गई।
संचालन करते हुये सैयद शहनशाह हैदर आब्दी ने कहा,” इतिहास में ऐसे कम ही लोग देखे जा सकते हैं जिनका अस्तित्व सर्वकालिक हो और समय उनकी यादों को मिटाने में विफल रहा हो। हज़रत अली इब्ने अबी तालिब ऐसी ही हस्ती हैं और सभी कालों से संबंधित हैं। लेबनान के प्रख्यात लेखक ख़लील जिबरान, यद्यपि ईसाई हैं, किंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं में से एक हैं। वे उनके बारे में अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं। मैं इस बात को समझ नहीं पाता हूं कि क्यों कुछ लोग अपने काल से इतने आगे होते हैं। मेरे विचार में हज़रत अली केवल अपने समय और काल से विशेष नहीं थे बल्कि वे ऐसे व्यक्ति हैं जो जिनका अस्तित्व सर्वकालिक है।। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ऐसी हस्ती हैं जिनके अस्तित्व के गुणों और पवित्र प्रवृत्ति ने उन्हें सभी मानवीय आयामों से श्रेष्ठ बना कर हर समय व पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत किया है।“
विशिष्ट अतिथि हुज्जातुल इस्लाम मौलाना जनाब सैयद फरमान अली ने कहा,” इस्लाम, प्रेम शांति और भाई चारे का मज़हब है। चन्द लोगों को छोडकर सभी मुसलमान प्रेम शांति और भाई चारे के साथ रहना चाहते हैं। यही चन्द लोग इस्लाम का नक़ाब पहनकर रसूले खुदा के ज़माने में भी मुखाफलत करते रहे। रसूले खुदा की शहादत के बाद यह लोग खुल कर दहशतगर्द (आतंकवादी) हो गये। 19 रमज़ान 40 हिजरी को कूफे की मस्जिद में रसूले खुदा के वास्तविक उत्तराधिकारी हज़रत अली पर सुबह की नमाज़ पढते हुये सजदे में ज़हर की बुझी तलवार से अब्दुलरहमान इब्ने मुल्जिम का क़ातिलाना हमला इस्लाम के नाम पर पहला बडा आतंकी हमला था, जिससे 21 रमज़ान 40 हिजरी को हज़रत अली की शहादत हुई। आज भी इसी विचारधारा के लोग इस्लाम के नाम पर दहशत गर्दी कर इंसानियत और इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं। हमने इनका कल भी सशक्त विरोध किया था, हम आज भी इनके सशक्त विरोधी हैं। इन बुज़दिलों के विरुध्द हमारा सशक्त संघर्ष और हमारी क़ुर्बानियां कल भी इतिहास में दर्ज थीं आज भी दर्ज हो रही हैं। हम इन्हें नेस्तोनाबूद कर ही चैन की सांस लेंगे। “
मुख्य वक्ता हुज्जातुल इस्लाम मौलाना जनाब सैयद तनवीर रज़ा ‘विक्टर’ ने हज़रत अली की ज़िन्दगी पर प्रकाश डालते हुये कहा कि “एहसास ज़िन्दा है तो इंसान ज़िन्दा है अन्यथा मुर्दा”। हज़ारों लोग क़ब्रिस्तानों में सोकर भी ज़िन्दा हैं जबकि हज़ारों लोग ऐसे भी हैं जो आलीशान महलों में रहकर भी मुर्दा हैं। खुदा ने हमें खिदमते खल्क़ के लिये पैदा किया है, दूसरों का दुखदर्द बांटोगे तो ज़िन्दा होने का सुबूत दोगे, मुल्क और पडोसी से मोहब्बत करोगे तो ज़िन्दा होने का सुबूत दोगे। नेक काम करो ताकि मौत के बाद भी ज़िन्दा रहो। हज़रत अली ऐसे ही थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि में संसार तब तक प्रिय व सम्मानीय है जब तक वह लोगों की सेवा, न्याय के प्रसार और शांति व समानता के आधारों को सुदृढ़ बनाने का माध्यम हो। संसार के संबंध में यही दृष्टिकोण इस बात का कारण बनता है कि अली अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध युद्ध के रणक्षेत्र के सबसे बड़े योध्दा बन जाते हैं और अत्याचाग्रस्त लोगों को उनके अधिकार दिलाने के लिए अपनी जान की बाज़ी तक लगा देते हैं। इसी प्रकार वे तपती दोपहर में खजूरों के बागों की सिंचाई करते हैं और उससे प्राप्त होने वाले धन को दरिद्रों और वंचितों पर ख़र्च कर देते हैं। वे सर्वकालिक योग्य शासक थे।
हज़रत अली को सच्ची श्रृध्दांजली यही होगी कि हम दीन दुखी, परेशान हाल, बीमार और कमज़ोर मानव की सेवा करें और समाज एवं मुल्क में अमन, प्रेम और आपसी भाईचारगी के लिये काम करें।
इसके पश्चात मौलाना से हज़रत अली के मसायब पढे तो श्रृध्दालुओं की आंखों से बरबस आंसू निकल पडे और इसी ग़मगीन माहौल में “मौला के ताबूत की ज़ियारत कराई गई। “इब्ने मुल्जिम ने हैदर को मारा – रोज़ादारो क़यामत के दिन है” नौहा पढा गया और नौहा-ओ-मातम हुआ। नौहा आलीजनाब रानू नक़वी, अली समर और आबिद रज़ा हाशिम ने पढा। मर्सियाख्वानी आलीजनाब इं0 काज़िम रज़ा, आलम भाई, अस्करी नवाब और हाजी तक़ी आब्दी ने की। बाद में श्रृध्दालुओं ने मुरादे मांगी और मन्नतें बढाईं। अंत में सभी धर्मगुरुओं ने मिलकर शांति पाठ किया और सबके लिये सुख, समृध्दि, शांति और सफलता की प्रार्थना की।
मजलिसे अज़ा में सर्वश्री हाजी कैप्टन सज्जाद अली, हाजी सईद मोहम्मद,शाकिर अली,सग़ीर हुसैन, ज़मीर अब्बास, सईदुज़्ज़मां, अमीर हुसैन,जावेद अली, जमशेद अली, अज़ीज़ फातिमा, नफीसा फातिमा, अनवर जहां,हिना, फिरदौस फातिमा, सामरा, फरहा नाज़, ऐमन मरियम, हुमेरा, शीबा रिज़वी,मुमताज़ फात्मा, हयात फातिमा, कनीज़ ज़ेहरा, इरशाद फातिमा, अज़ादार फातिमा, शाहिदा बेगम, ज़ाहिदा बेगम,मुशाहिदा बेगम, मंसूबा फातिमा, क़मर हैदर, हैदर रज़ा, बाक़र अली ज़ैदी,अब्दुल ग़फूर, सग़ीर मेहदी, रईस अब्बास, ज़ाहिद हुसैन ”इंतज़ार”, वसी हैदर, रोशन अली, फीरोज़ अली,ज़ुल्फिक़ार अली, सिराज मेहदी, फैज़ अब्बास, सुखंवर अली, दानिश अली,अतालिक़ हैदर, अख़्तर हुसैन, नईमुद्दीन,मुख़्तार अली, ताज अब्बास, ज़ीशान हैदर, अली क़मर, फुर्क़ान हैदर, वसी हैदर, मज़ाहिर हुसैन, आरिफ रज़ा,इरशाद रज़ा, जाफर नवाब, अली समर, मोहम्मद रज़ा, सबा फातिमा, शाहरुख़ आब्दी, सदफ, ज़ैनुल रज़ा, राजू आब्दी आदि के साथ बडी संख्या में श्रृध्दालु उपस्थित रहे। महिलाओं ने भी बडी संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
आभार जनाब सैयद तक़ी आब्दी और सैयद अता अब्बास आबदी ने ज्ञापित किया ।
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