झांसीः उप्र व्यापार मंडल मे मची भगदड़ को थामने की कवायद कहे या फिर बुलाए-बुलाए नहीं आ रहे पदाधिकारियो को मनाने की मजबूरी। संगठन के मुखिया का यह हालत हो गयी कि पदाधिकारियो के पास चलकर उनके गुस्से की वजह पूछी जा रही। इतना ही नहीं अपनी साख बनाये रखने के नुस्खे भी पूछे जा रहे। संजय पटवारी बीते रोज प्रदेश स्तर के एक पदाधिकारी के पास पहुंचे और लंबी वार्ता की।
उप्र व्यापार मंडल के अध्यक्ष या कहे कि प्रदेश अध्यक्ष। भले की संगठन की सीमा झांसी जनपद के आसपास की दूरी तय नहीं कर पायी हो, लेकिन प्रदेश स्तर का तमगा तो लगा ही सकते हैं। जब झांसी मे नेशनल लेबल के अध्यक्ष हो सकते, तो संजय के लिये प्रदेश स्तर का होना कोई बुरी बात नहीं है।
बरहाल, मुददा यह नहीं है।आपको बता दे कि बीते दिनो उप्र व्यापार मंडल की महिला शाखा की जिलाध्यक्ष कंचन आहूजा ने अपने कुछ साथियो के साथ उप्र उद्योग व्यापार मंडल को ज्वाइन कर लिया। कंचन के उप्र व्यापार मंडल से बाहर जाने के कई कारण है, जिसमें प्रमुख यह है कि महिला पदाधिकारियो के बीच मतभेद काफी गहरा गये थे। इन मतभेद को संजय पटवारी चाह कर भी नहीं सुलझा पा रहे थे।
बाद मे कंचन आहूजा को महत्वाकांक्षा मानते हुये उनसे किनारा कर लिया। संजय को यह अंदेशा नहीं था कि कंचन दूसरे गुट मे चली जाएंगी। अचानक हुये इस घटनाक्रम ने उप्र व्यापार मंडल की छवि को तगड़ा झटका दिया। महिला शाखा के पदाधिकारियो के बाहर जाने के बाद भरपाई के नाम पर संजय ने तत्काल दूसरी पदाधिकारी यानि अर्पणा दुबे को जिलाध्यक्ष बना दिया। अर्पणा और कंचन के बीच ही विवाद चल रहा था।
महिला शाखा मे हुये विवाद के बाद पदाधिकारियो का बाहर जाना, निकाय चुनाव मे कई संगठन के लोगो का राजनैतिक दलो के पाले मे चले जाने की प्रक्रिया ने संजय पटवारी के नेतृत्व क्षमता पर सीधा सवाल खड़ा कर दिया।
अपने संगठन को विखराव के रास्ते पर खड़ा देख संजय को अचानक व्यापारी राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शैलेष भाटिया की याद आ गयी।
आपको बता दे कि शैलेष ही वो व्यापारी नेता है, जिन्हांेने संजय पटवारी और उप्र व्यापार मंडल को मजबूती प्रदान की।
मौके बाद दूध से मक्खी की तरह निकाल देने की संजय की आदत ने शैलेष को भी अपने लपेटे मे ले लिया था। काफी सालो के साथ के बाद शैलेष ने जब विजय जैन के संगठन जय बुन्देलख्राण्ड व्यापार मंडल को ज्वाइन किया, तो संजय सकते मे आ गये थे।
अपनी जुगाड़ू नीति और चमकते सितारा होने का दंभ पाले संजय पटवारी ने शैलेष, विजय जैन जैसे साथियो को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद नये चेहरे खड़े किये। इनमे राजेश बिरथरे उन दिनो संजय पटवारी के सबसे खास सिपहसलार बने। राजेश के हाथ मे संगठन को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी दी गयी, तो उन्होने बखूबी निभाया। हालंाकि बाद मे राजेश को समझ आ गया कि संगठन के लिये रात दिन एक करने के बाद भी उन्हे कुछ नहीं मिल रहा, तो उन्होने पद से मोह त्यागते हुये अपने व्यापार को संभालने का काम करना शुरू कर दिया।
इसके बाद संजय पटवारी ने संतोष साहू के कंधा पर जिम्मेदारी डाली। संजय कई बार प्रयास मे रहे कि किसी प्रकार शैलेष उनके पास वापस आ जाए, लेकिन शैलेष ने साफ इंकार कर दिया।
बीते दिनो अपनी जुगाड़ नीति को एक बड़े व्यक्ति के कंधे का प्रयोग करते हुये संजय पटवारी ने शैलेष को प्रदेश मंत्री पद का ओहदा देते हुये संगठन मे शामिल कर लिया।
शैलेष संगठन मे तो आ गये, लेकिन उन्होने अपनी कुछ शर्ते संजय के सामने रख दी। शैलेष के बारे मे कहा जाता है कि वो सहज और सरल है। अपना सब कुछ लुटाकर दूसरे को बनाने की आदत के चलते शैलेष व्यापारी राजनीति का चमकता सितारा बनने की दिशा मे आगे नहीं बढ़े।
संगठन मे दोबारा वापस आने के बाद शैलेष भाटिया ने संजय पटवारी से कई महीने मुलाकात तक नहीं की। संजय को इस बात गुमान रहा कि 24 चैम्बर मे बने उनके कार्यालय की कोठी अच्छे-अच्छे लोगो को शरणागत कर देती है, तो शैलेष क्या चीज हैं।
यहां संजय यह भूल गये कि सच्चाई का सितारा कभी लालच की रोशनी मे नहीं डूब सकता! आज हालत यह हो गयी कि संजय खुद चलकर शैलेष के पास पहुंचे और दुकान पर बैठे रहे। घंटो बतियाये, टिप्स मांगे। हालात को काबू मे करने की सलाह मांगी। दरियादिल शैलेष पिघल गये। शैलेष भी मानते है कि संजय हमारे पास आये, किसी काम के सिलसिले मे आवास विकास आये थे, बोले-आपसे भी मिलता चलूं? बाते हुयी। इसके आगे शैलेष के सुर इशारा देकर थम गये।
अब देखना यह है कि चाणक्य के गुर संजय को कितना दम दे पाते हैं?