क्या प्रदीप जैन का जादू चलेगा

झाँसी। निकाय चुनाव मे कॉंग्रेस दमदार प्रदर्शन करेगी। ये सवाल इन दिनों हर किसी की जुबा पर है। सबकी निगाहे प्रदीप जैन पर है। वो काग्रेस को नयी ऊर्जा देने मे जुटे है। सभी को साथ लेकर सगठन मे नया संचार उन्हे राजनीति मे आगे ले जाएगा। प्रदीप भी चाहते है की सभी मिलकर बीजेपी को करारा जबाब दे। यही कारण है की बीते दिनों हुये सम्मेलन मे सभी ने अपना दमखम दिखाया।

 

लोकसभा चुनाव मे भीड़ के सहारे अपने शक्ति प्रदर्शन को करने वाले दलो  की सही हैसियत 16 मई को सामने आ गयी थी, जब भाजपा ने सभी दलो  को  पछाड़ते हुये प्रचंड जीत हासिल की थी। जनता तक अपना संदेश पहुंचाने मे  जो सफल रहा, वो विजेता बना। इस को समझते हुये अब निकाय चुनाव मे  सभी दल अपने भीड़ तंत्र पर काम करने मे  जुट गये हैं। यह चुनाव सभी दलो  के लिये संजीवनी का काम करंेगे। बुन्देलखण्ड मे  जीत के बाद नेताओ  को आगामी चुनावो  मे  मिलने वाली जिम्मेदारियो का आंकलन होगा।

कल तक जो राजनैतिक दल लोगो  के घर-घर दस्तक देकर वोट और समर्थन मांगने की परंपरा पर चलते थे, आज बदले हुये परिवेश मे  उन्हंे भी सभओ मे  भीड़ देखना पसंद आने लगा है। यही कारण है कि सभी दलो  के नेताओ  की रैली से पहले मैनजमंेट कर्ताओ  को भीड़ का टारगेट दे दिया जाता है।

बुन्देली माटी भी पिछले दिनो  देश की संसद मे  पहुंचने वाले माननीयो  के दंगल का गवाह बनी थी। यहां भी लोकसभा का बिगुल बजते ही चुनावी रंग पूरी तरह फिजा मे  बिखरा नजर आया था। वैसे बुन्देली माटी की बात करे, तो यहां किसान, मजदूर और व्यापारी वर्ग के साथ नौकरपेशा व्यक्ति ज्यादा है।

ग्रामीण इलाकों मे  अपनी पकड़ बनाने के लिये सपा,बसपा, कांग्रेस और भाजपा के बीच होड़ लगी रहती है। बुन्देली माटी मे  अपना गढ़ मानने वाली भाजपा ग्रामीण इलाको  मे  वो पैठ अब तक नहीं बना पायी जो दूसरी पार्टियो  ने बना रखी है। बात चाहे सपा, बसपा या फिर कांग्रेस की हो। संसदीय क्षेत्र मे  झांसी व ललितपुर के कई ग्रामीण इलाको मे  आज भी इन्हीं दलो  का जादू लोगो  के सिर चढ़कर बोलता है। कांग्रेस का आधार ग्रामीण इलाको मे  आज भी बरकरार है, भले की देश मे  कांग्रेस हाशिये पर हो,  लेकिन वोट प्रतिशत के लिहाज से ग्रामीण और मुस्लिम इलाको  मे  उसकी स्थिति बेहतर मानी जाती है। इस बारक निकाय चुनाव की तैयारियो मे  जुट रहे दलो  की रणनीति मे   व्यापक बदलाव देखने को मिल सकता है।

खासकर नरेन्द्र मोदी के मैदान मे  आने के बाद रैलियो  मे  भीड़ का रेला दिखाने की होड़ सी मचेगी। हालंाकि निकाय चुनाव मे  नरेन्द्र मोदी का कोई रोल नहीं होगा, लेकिन उनकी छवि दांव पर लगी रहेगी।

एक रैली मे  ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने का लक्ष्य और रणनीति बनाने वाले लोग हर दल मे  तज्जवो दी जाएगी। आपको याद होगा कि चुनाव से पहले झांसी मे  दो बड़ी रैलियां हुयी। इनमंे एक भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी की थी तो दूसरी सपा के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की। खास बात यह रही कि दोनो  ही रैलियां जीआईसी मैदान मे  आयोजित की गयी। बहुत साफ है कि एक ही मैदान मे  रैली करने के पीछे कहीं न कहीं यह मंशा रही थी यह कैसे दर्शाया जाए कि हमारी ताकत तुम्हारी ताकत से कहीं ज्यादा है?

भीड़ से हवा बनाने की भाजपा की शैली को दूसरे दलो  ने भी अपना लिया है। बसपा ने मायातवी की रैली मे  भीड़ जुटायी तो प्रदीप ललितपुर मे  राहुल गांधी को भीड़ के बीच ले गये थे।

राजनैतिक दलो  के इस भीड़ तंत्र वाले फार्मूले मे  कितना दम है यह तो निकाय चुनाव की मतगणना के बाद पता चलेगा, लेकिन बुन्देली माटी मे  इस बात का दम तो नजर आने लगा है कि लोग चुनावी हिसाब से नहीं बल्कि मौका और नजाकत का आंकलन करने को तैयार होते हैं। वह घर से बाहर निकलते हैं और रैलियो मे  नेताओ  के साथ दूसरे लोगो  के विचार और परिस्थितियो  को देखने समझने लगे हैं। इसी बदलाव मे  स्थापित राजनैतिक दलो  के परंपरागत वोट को इधर से उधर करने का राज छिपा है। किस समाज या वर्ग का वोट किधर जाएगा ,पहले यह बात अंतिम समय तक गोपनीय रहा करती थी, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया मे  आ रहे बदलाव ने लोगो  को दलो  के प्रति अपनी राय कायम करना शुरू कर दिया है। लोग भीड़ तंत्र का हिस्सा बनकर नेताओ  और दलो  को टटोलने लगे हैं। भले ही राजनैतिक दल यह मानकर खुश हो कि हमारी रैली मे  दूसरे दल की रैली से भीड़ ज्यादा थी। लोगो  की इस राय और समर्थन पाने के लिये बनायी गयी भीड़ तंत्र की यह नीति चुनाव मे  क्या रंग दिखाती है, यह जल्द ही सामने आएगा।

 

 

 

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